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________________ १९६ गो० जीवकाण्डे मोदलोळु सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकजघन्यावगाहनस्थानमादियागि तदुत्कृष्टपथ्यंतमाद पदिनारं गुणितक्रमस्थानंगळ्गमुमो दधिकक्रमस्थानक्क, प्रत्येकमेरडेरडु शून्यसंदृष्टिकरणदिदं चतुस्त्रिशच्छून्यंगळु तिर्यक्कागि स्थापिसल्पटु वा प्रकारदिंदमा पंक्तियदं कळगे सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकवायुकायिकजीवजघन्यावगाहनमादियागि तदुत्कृष्टावगाहनस्थानावसानमादेकानविंशति५ स्थानंगळ्गमष्टात्रिशच्छून्यंगळु स्थापिसल्पटुवंते तत्पंक्तियिदं के लगे सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकतेज स्कायिकजघन्यावगाहनस्थानमादियागि तदुत्कृष्टावगाहनावसानमागेकविंशतिस्थानंगळगे द्वाचत्वारिशच्छ्न्यंगळु स्थापिसल्पटुवंते तत्पंक्तियिदं केळगे सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकाप्कायिकजधन्यावगाहनस्थानं मोदल्गोंडु तदुत्कृष्टपर्यंतमादवगाहनस्थानंगळ्त्रयोविंशतिगळ्गे षट्चत्वारिंशच्छून्यंगळु स्थापिसल्पटुवंते तत्पंक्तियिदं केळगे सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकभूकायिकजघन्यावगाहनस्थानमादियागि १० तदत्कृष्टावगाहनपय्यंतं पंचविशतिस्थानंगळग पंचाशच्छन्यंगळ स्थापिसल्पटट्वंत। तत्पंक्तियिदं केळगे बादरलब्ध्यपर्याप्तकवायुतेजोन्भूकायिकनिगोदप्रतिष्ठिताऽप्रतिष्ठितप्रत्येकद्वित्रिचतुः जघन्यावगाहनस्थानमादिं कृत्वा तदुत्कृष्टपर्यन्तं षोडशगुणितक्रमस्थानानामेकाधिकस्थानस्य च प्रत्येक शून्यद्वयसंदृष्टिकरणेन चतुस्त्रिशच्छून्यानि तिर्यग्लिखितव्यानि तथा तत्पङ्क्तेरधः सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकवायुकायिकजीव जघन्यावगाहनादितदुत्कृष्टावगाहनावसानैकोनविंशतिस्थानानां अष्टात्रिशच्छन्यानि लिखितव्यानि । तथा १५ तत्पङ्क्तेरधः सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकतेजस्कायिकजघन्यावगाहस्थानादितदुत्कृष्टावगाहनस्थानावसानैकविंशतिस्थानानां द्वाचत्वारिंशच्छ्न्यानि लिखितव्यानि । तथा तत्पङ्क्रधः सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्त काप्कायिकजघन्यावगाह्नस्थानादितदुत्कृष्टावगाहनस्थानावसानत्रयोविंशत्यवगाहस्थानानां षट्चत्वारिशच्छ्न्यानि लिखितव्यानि । तथा तत्पङ्क्तरधः सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तकभूकायिकजघन्यावगाहनस्थानादितदुत्कृष्टावगाहनस्थानपर्यन्तं पञ्चविंशतिस्थानानां पञ्चाशच्छून्यानि लिखितव्यानि । तथा तत्पङ्क्तेरधो बादरलब्ध्यपर्याप्त कवायुतेजोब्भूकायिकनिगोद २. कहते हैं । प्रथम सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य अवगाहन स्थानसे लेकर उसके उत्कृष्ट अवगाहनस्थानपर्यन्त सोलह स्थान तो गुणित क्रम हैं और एक स्थान साधिक है। एक-एक स्थानकी सूचक संदृष्टि दो शून्य है। सो चौंतीस शन्य दो-दो बिन्दीमें बराबर लिखते हुए सतरह जगह लिखना । यहाँ सूक्ष्म निगोदलब्ध्यपर्याप्तका जघन्य स्थान पहला है और उत्कृष्ट अठारहवाँ है । किन्तु गुणकारपनेकी अधिकतारूप अन्तराल सतरह ही हैं । इसलिए सतरहका २५ ही ग्रहण किया है। ऐसे ही आगे भी समझना। इसी तरह उक्त पंक्तिके नीचे दूसरी पंक्ति में सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्तक वायुकायिक जीवके जघन्य अवगाहनस्थानसे लेकर उसीके उत्कृष्ट अवगाहनस्थान पर्यन्त उन्नीस स्थान हैं । उनकी अड़तीस बिन्दी लिखना। यह दूसरा स्थान होनेसे ऊपरकी पंक्तिमें प्रथम स्थानकी दो बिन्दी छोड़कर द्वितीय स्थानकी दो बिन्दीसे लेकर आगे बराबर अड़तीस बिन्दी लिखना। तीसरी पंक्तिमें सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक तेजस्कायिक की जघन्य अवगाहनासे उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त इक्कीस स्थान हैं । उनकी बयालीस बिन्दी लिखना । सो यह तीसरा स्थान होनेसे इससे ऊपरकी दूसरी पंक्तिके दूसरे स्थानकी दो बिन्दीके नीचेके स्थानको छोडकर तीसरे स्थानकी दो बिन्दीसे लेकर बयालीस बिन्दी दो-दो करके इक्कीस स्थानों में लिखना। इसी तीसरी पंक्तिके नीचे चौथी पंक्तिमें सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्त अप्कायिकके जघन्य अवगाहनसे लेकर उत्कृष्ट अवगाहन पर्यन्त तेईस स्थानोंकी ३५ छियालीस बिन्दी लिखना। यह चौथा स्थान होनेसे तीसरे स्थानकी दो बिन्दीके नीचेको ३. १. म गल्किर्यक्कागि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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