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________________ १९७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका पंचेंद्रियजीवंगळगे तं तम्मजघन्यावगाहनमादियागि तंतम्ममुत्कृष्टावगाहनस्थानपर्यंतं यथासंख्यमागि सप्तविंशत्येकान्नत्रिशदेकत्रिशत्रत्रिंशत्पंचत्रिंशत्सप्तत्रिंशत्षट्चत्वारिंशच्चतुश्चत्वारिंशदेकचत्वारिंशत् एकचत्वारिंशत्रिचत्वारिंशत्स्थानंगळगंवा ते आ भू निप्र अ बिति च पं २७ २९३१३३३५३७४६४४४१४१४३ चतुःपंचाशदष्टपंचाशद्विषष्टिषट्षष्टिसप्ततिचतुःसप्ततिद्वानवत्यष्टाशीतिद्वयशीतिद्वयशोतिषड- ५ शोति संख्याशून्यंगळु स्थापिसल्पटुवु ॥ । आफु नि । प्र अ बिति । च । पं ५४ / ५८ ६२ ६६ ७० / ७४ ९२ / ८८ ८२ ८२ ८६ | ई प्रकारदिंदमा पंचेंद्रियलब्ध्यपर्याप्तकन पंक्तियदं केळगे सूक्ष्मनिगोदपर्याप्तकजघन्यावगाहनस्थानं मोदलगोंडु तदुत्कृष्टावगाहनपर्यंतमेरड स्थानंगळगे नाल्कु शून्यंग स्थापिसल्पटु १० ४ वी प्रकारदिदं मुंदेयोदे पंक्तियोळु सूक्ष्मपर्याप्तकवायुतेजोऽब्भूकायिकंगळगयं मत्तं बादरपर्याप्तवायुतेजोऽप्पृथ्वीकायिकनिगोदप्रतिष्ठितप्रत्येकजीवंगळगयु स्वस्वजघन्यावगाहनस्थानमादियागि वा णि २ प्रतिष्टिताप्रतिष्ठितप्रत्येकद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियजीवाना स्वस्वजघन्यावगाहनस्थानमादि कृत्वा स्वस्वोत्कृष्टावगाहनस्थानपर्यन्तं यथासंख्यं सप्तविंशत्येकान्नत्रिशदेकत्रिंशत्त्रयस्त्रिशत्पञ्चत्रिंशत् सप्तत्रिंशत्पट्चत्वारिशच्चतुश्चत्वारिशतएकचत्वारिंशदेकचत्वारिंशत्रिचत्वारिंशत्स्थानानां चतुःपञ्चाशत्अष्टपञ्चाशद्विषष्टिषट्षष्टिसप्ततिचतुः- १५ सप्ततिद्वानवत्यष्टाशीतिद्वयशीतिद्वयशीतिषडशीतिसंख्यानि शन्यानि लिखितव्यानि । अनेन प्रकारेण तत्पञ्चेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकपङ्क्तेरधः सूक्ष्मनिगोदपप्तिकजघन्यावगाहनस्थानमादि कृत्वा तदुत्कृष्टावगाहनस्थानपर्यन्तं छोड़कर चौथे स्थानकी दो बिन्दीसे लेकर छियालीस बिन्दी लिखना। इसी तरह इस चतुर्थ पंक्तिके नीचे पाँचवीं पंक्तिमें सूक्ष्मलब्ध्यपर्याप्त पृथ्वीकायिकके जघन्य अवगाहनसे लेकर उत्कृष्ट अवगाहनपर्यन्त पच्चीस स्थान हैं। उनकी पचास चिन्दी लिखना। सो यह पाँचवाँ २० स्थान होनेसे चौथे स्थानकी भी दो बिन्दीके नीचेको छोड़कर पाँचवें स्थानकी दो बिन्दीसे लेकर पचास बिन्दी लिखना । इसी तरह उक्त पंक्तिके नीचे छठी, सातवीं, आठवीं, नवमी, दशमी, ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, चौदहवीं, पन्द्रहवीं और सोलहवीं पंक्तिमें बादरलब्ध्यपर्याप्तक वायुकाय, तेजकाय, अप्काय, पृथ्वीकाय, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक, अप्रतिष्ठित प्रत्येक, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन ग्यारहकी अपने-अपने जघन्य २५ स्थानसे लेकर उत्कृष्ट स्थानपर्यन्त क्रमसे सत्ताईस, उनतीस, इकतीस, तैंतीस, पैतीस, सैंतीस, छियालीस, चवालीस, इकतालीस, इकतालीस, तेतालीस स्थान हैं। इनके चौवन, अठावन, बासठ, छियासठ, सत्तर, चौहत्तर, बानबे, अठासी, बयासी, बयासी और छियासी बिन्दी लिखना। सो ये स्थान छठे-सातवें आदि होनेसे ऊपरकी पंक्तिके आदि स्थानकी दो-दो बिन्दीके नीचेको छोड़कर छठे-सातवें आदि स्थानकी दो बिन्दीसे लेकर पंक्तिमें लिखना। ३० इसी प्रकार उस पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी पंक्तिके नीचे सतरहवीं पंक्ति में सूक्ष्म निगोद पर्याप्तके जघन्य अवगाहन स्थानसे लेकर उत्कृष्ट अवगाह पर्यन्त दो स्थान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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