SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ १७६ गो० जीवकाण्डे ६।८।२११ पर्याप्तोत्कृष्ठावगाहनमनावल्यसंख्येय भागदिदं खंडितकभागमक्कू प८।८।४।८।२११९८ aaa ६।८।२० aa मिनिरिंदमभ्यधिकम बुदत्थं । इदं कूडियपत्तितं ५८।८।३। ८ । १९ । १९ इदं नोर्ड ६।८। २० सूक्ष्मवायुकायिकपर्याप्तजघन्यावगाहमावल्यसंख्येयभागगुणितमपत्तित प ८।८।३। ८ २०॥ १९ मिदं नोर्ड सूक्ष्मवायुकायिकापर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं विशेषाधिकमा विशेषमुं मुंनिनंतेयावल्यसंख्येय a aa ६।८।१९ ५ भागमं तंदु कूडियपत्तिसि दो राशियं प ८। ८।३। ८ । १९ । १९ नोड तदधस्तन सूक्ष्मवायु a aa ६।८ । २१ पूर्वोक्त निगोदापर्याप्त कोत्कृष्टावगाहस्यावल्यसंख्येयभागभक्तकभागमानं प । ८।८।४।८।२१ । १९।८ ६। ८ । २० a इमं मेलयित्वापवर्तितःप । ८।८।४। ८ । २०। a a a ६।८। २० । ९ अतः सूक्ष्मवायकायिकपर्याप्तजघन्यावगाहः आवल्यसंख्येयभागगणितोऽपवर्तितः-प।८। ८।३। ८। २० ।। ९ अतः सुक्ष्मवायुकायिकापर्याप्तो a aa त्कृष्टावगाहनं विशेषाधिकं । विशेषोऽत्रावल्यसंख्येयभक्तपूर्वराशिमात्रः तं मेलयित्वा अपवर्तयेत्६ । ८। १९ । ९ अतस्तदधस्तनसुक्ष्मवायुकायिकपर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं विशेषाधिक प । ८। ८।३। ८। १९ । a a a सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहनासे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना विशेष अधिक है । यहाँ विशेषका प्रमाण पूर्वोक्त सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना के आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देनेपर एक भाग मात्र है। इसको पूर्व अवगाहनामें जोड़ पूर्ववत् अपवर्तन करना । इससे सूक्ष्मवायुकायिक पर्याप्तका जघन्य अवगाह आवलीके असंख्यातवें भाग गुणा है। सो अपवर्तन करनेपर पहले चार बार आवलोके असंख्यातवें भागका भाग था। सो तीन बार ही रहा। इससे सूक्ष्मवायुकायिक अपर्याप्तका उत्कृष्ट अवगाह विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण पूर्व राशिको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देनेपर एक भाग मात्र है। उसे जोड़कर अपवर्तन करना। इससे नीचे सूक्ष्म वायुकायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy