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________________ कर्णावृत्ति जोवतत्वप्रदीपिका गाहं परस्थानक्के बादरात्सूक्ष्मस्य को गुणकार आवल्यसंख्येयभाग : एंदी राद्धांतोपदिष्टवाक्योप ६ । ८ । २२ देशददमादावल्यसंख्येयभागगुणित - प८८४ । ८ । २२ । २ । ९ मिर्द नोर्ड सूक्ष्मनिगोदा aa पतत्कृटावगाहं ६ । ८ । २२ a विशेषाधिमक्कुं तद्विशेषप्रमाणमुं सूक्ष्मनिगोदपर्याप्त जघन्यावगाहनमिदं ६ । ८ । २२१ a მ प ८ । ८ । ४ । ८ । २२ । १९ मावल्यसंख्यातभार्गादिदं खंडिसिदेकभाग प ८|८|४|८| २२ । १ । ९ । ८ a a Ə მ a a ६ । ८ । २१ a मिदु विशेष प्रमाणमिदरदमभ्यधिक में बुदार्थमिदं कूडियपर्वात्ततमिदु प ८।८।४ । ८ । २१ । १ । ९ ५ a aaa इदं नोडे सूक्ष्मनिगोदपर्याप्तकोत्कृष्टावगाहं विशेषाधिकमक्कुमा विशेषमुं पूर्वोक्तसूक्ष्मनिगोदा १७५ ६ । ८ । २२ a न्यावगाहः परस्थानभूतावल्यसंख्येयभागगुणितोऽपवर्तितः प । ८ । ८ । ४ । ८ । २२ । १। ९ । अतः a მ a सूक्ष्मनिगोदापर्यातोत्कृष्टावगाहो विशेषाधिकः तद्विशेषप्रमाणं तु सूक्ष्मनिगोदपर्याप्त जघन्यावगाहस्यावल्यसंख्येय ६ । ८ । २२ । a भागभक्तक भागमात्रं प । ८ । ८ । ४ । ८ । २२ । ३ । ९ । ८ इदं प्रक्षिप्य राशिमपवर्तयेत् । a a მ a Jain Education International ६ । ८ । २१ । a प। ८। ८।४ । ८ । २१ । १ । ९ अतः सूक्ष्मनिगोदपर्याप्तकोत्कृष्टावगाहो विशेषाधिकः । विशेषप्रमाणं a a a For Private & Personal Use Only सु असंख्यातवें भागोंका अपवर्तन होनेसे आठ बार पल्यके असंख्यातवें भागका भागहार रहता है । अन्य भागहार गुणाकार पूर्ववत् जानना । इससे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तकका जघन्य अवगाहना स्थान परस्थानरूप है सो आवलीके असंख्यातवें भाग गुणा है । पहले आवलीके असंख्यातवें भागका भागहार पाँच बार रहा था । उसमें से एक बारका अपवर्तन करना । इससे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तका उत्कृष्ट अवगाह विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण सूक्ष्म- १५ निगोद पर्याप्तके जघन्य अवगाहस्थानको आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर एक भाग मात्र है । इसको उसी सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तके जघन्य अवगाहस्थानमें समच्छेद विधानके द्वारा मिलाकर राशिका अपवर्तन करनेपर सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना होती है । सो पूर्व राशिमें बाईस बार एक अधिक आवलीके असंख्यातवें भागका भागहार है और बाईस बार ही आवलीके असंख्यातवें भागका गुणाकार है सो इनमें एक बारका अपवर्तन करनेपर बाईस बारकी जगह गुणाकार भागहार इक्कीस बार ही रहे। इसी तरह आगे भी जहाँ विशेष अधिक हो, वहाँ अपवतन करके आवलीके असंख्यातवें भागके गुणाकार और एक अधिक आवलीके असंख्यातवें भागके भागहारको एक बार कम कर देना। आगे १० २० www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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