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________________ १६८ गो० जीवकाण्डे समासंगळोळगे मोदल सूक्ष्मनिगोदादि पंनो दुजीवसमासंगळमुंद मूरुपंक्तियागि तिर्यग्रचियिसल्पडुववल्लि यो दोंदु पंक्तिग कोष्टद्वयमुमरियल्पडुगुं॥ अपदिद्विदपत्तेयं बितिचपतिचवि अपदिद्विदं सयलं । तिचवि अपदिद्विदं च य सयलं बादालगुणिदकमा ॥९८।। ५ अप्रतिष्ठितप्रत्येको द्वित्रिचतुःपञ्चत्रिचतुदृयप्रतिष्ठिताः सकलः। त्रिचतुद्वर्यप्रतिष्ठिताश्च सकलो द्वाचत्वारिंशद्गुणितक्रमाः ॥ मत्तमा पंक्तित्रयद मुंदै दशमकोष्ठदोळऽप्रतिष्ठित प्रत्येकमु द्वित्रिचतुःपंचेंद्रियजीवंगळे. बग्इंजीवसमासंगळबादरंगळेयप्पुल्लि बळिक्कं पन्नोंदनय कोष्ठदो त्रिचतुर्दोद्रियंगळुमप्रतिष्ठित प्रत्येकमुं सकलेंद्रियमुमेंबीयय्दु जीवसमासंगळ्बादरंगळेयप्पुवु । मुंदण पन्नेरडनेय कोष्ठदोळु १० त्रिचतुर्यप्रतिष्ठितसफलेंद्रियगळेबीयय्दु जीवसमासंग बादरंगळेयप्पुवी चतुःषष्टिजीवसमासंग वगाहनविकल्पंगळोळुपरितनपंक्तिगत द्वाचत्वारिंशज्जीवसमासंगळवगाहनविकल्पंगळु गुणितक्रमंगळप्पुवी सामर्थ्यदिदमे केळगणपंक्ति द्वयगतद्वाविंशतिजीवसमासंगळवगाहनविकल्पंगळधिक क्रमंगळप्पुवंतल्लदेयं सेढिगया अहिया तत्थेक्कुप्पडिभागो एंदुसूचितमाय्तु ॥ पुनस्तत्पङ्क्तित्रयस्याने दशमकोष्ठे अप्रतिष्ठितप्रत्येकद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रि यनामानः पञ्चवादरा भवन्ति । १५ तदने एकादशे कोष्ठे त्रिचतुर्दीन्द्रियाप्रतिष्ठितप्रत्येकसकलेन्द्रियनामानः पञ्च बादरा भवन्ति । तदने द्वादशे कोष्ठे त्रिचतूईचप्रतिष्टितसकलेन्द्रियनामानः पञ्चबादरा भवन्ति । एतेषु चतुष्पष्टिजीवसमासावगाहनविकल्पेषु उपरितनपक्तिगतद्वावत्वारिंशज्जीवसमासावगाहनविकल्पा गुणितक्रमा भवन्ति । तदन्ये तु 'सेढिगया अहिया तत्थेकपडिभागो' इति सूचितं जातम् ।।९८।। जानने चाहिए । अर्थात् पहले कहे तीसरे कोठेके आगे दो कोठे करो। उनमें जैसे पहले २० और दूसरे कोठेमें क्रमसे पाँच सूक्ष्म और छह बादर लिखे थे,वैसे ही यहाँ भी लिखना । उन दोनों कोठोंके नीचे एक पंक्तिमें दो कोठे और बनाओ। उनमें भी उसी प्रकार पाँच सूक्ष्म और छह बादर लिखो। उनके भी नीचे दो कोठे और बनाओ। उनमें भी उसी तरह पाँच सूक्ष्म छह बादर लिखो। इस तरह सूक्ष्म निगोद आदि ग्यारह स्थानोंकी दो-दो कोठोंकी तीन पंक्तियाँ हुईं। इस प्रकार ऊपरकी पंक्ति में पाँच कोठे, और उन पाँच कोठोंमें-से अन्तके २५ दो कोठोंके नीचे दो कोठे और फिर उनके भी नीचे दो कोठे, इस तरह सब मिलकर नौ कोठे हुए ।।९७॥ पुनः उन तीन पंक्तियोंके आगे दसवें कोठेमें अप्रतिष्ठित प्रत्येक, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय नामक पाँच बादर होते हैं। उसके आगे ग्यारहवें कोठेमें त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय, दोइन्द्रिय, अप्रतिष्ठित प्रत्येक, पंचेन्द्रिय ये पाँच बादर लिखो। उसके आगे बारहवें कोठेमें त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय, दोइन्द्रिय, अप्रतिष्ठित प्रत्येक, पंचेन्द्रिय ये पाँच बादर लिखो। इन चौसठ जीवसमासकी अवगाहनाके विकल्पोंमें-से ऊपरकी पंक्तिके आठ कोठोंमें स्थापित बयालीस जीवसमास अवगाहनाके विकल्प गुणितक्रम हैं अर्थात् क्रमसे पूर्वस्थानको विवक्षित गुणकारसे गुणा करनेपर आगेका अवगाहना विकल्प आता है। इन बयालीस स्थानोंसे अतिरिक्त जो नीचेकी दो पंक्तियोंमें स्थापित बाईस स्थान हैं,वे एक प्रतिभाग अधिक हैं। अर्थात् पूर्वस्थानको सम्भावित भागहारका भाग देकर एक भागको उस पूर्वस्थानमें जोड़नेपर आगेका स्थान होता है ।।९८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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