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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका १६७ __ अनंतरं सर्वजघन्यशरीरावगाहं मोदल्गोंडुत्कृष्टशरीरावगाहपर्यंतमप्प शरीरावगाहनविकल्पंगळ्गे स्वाम्यल्पबहुत्वगुणकारक्रमप्रदर्शनार्थमागि मुंदण गाथापंचकर्म निरूपिसिदपरु । सुहुमणिवाते आभूवाते आपुणि पदिट्ठिदं इदरं । बितिचपमाइल्लाणं एयाराणं तिसेढीय ॥९७॥ सूक्ष्मनिवाते आभूवाते आपुनिप्रतिष्ठितमितरं । द्वित्रिचतुःपञ्चाद्यानामेकादशानां त्रिश्रेणयः॥ ५ इल्लि नामैकदेशो नाम्नि प्रवर्तते एंबी लघुकरणन्यायमनायिसि नि । वा । ते। एंदित्यादि वनगळिदं निगोदवायुकायिकतेजस्कायिकादिजीवंगळ पेळल्पटुवु। निगोदवायुतेजोऽन्भूकायिकंगळे बीवय्दु सूक्ष्मंगळ्प्रथमकोष्ठदोळु मत्तं वायुतेजोऽप्पृथ्वीकाधिकंगळं निगोदमुं प्रतिष्ठितप्रत्येकमुमें दो बादरषड्जीवंगळु तिर्यक्कागि मुंनिनंते क्रमदि द्वितीयकोष्ठदोलु पुनरुक्तता सामर्थ्यदिदमिवु बादरंगजेंदरिवुदु ॥ मत्तमप्रतिष्ठित प्रत्येकद्वित्रिचतुः- १० पंचेंद्रियमे दी पंचजीवसमासंगळु बादरंगलेयप्युविq । तृतीयकोष्ठोळ ई पेळल्पट्ट पदिनारं जीव मेवोक्तं ॥९६॥ अथ सर्वजघन्यावगाहनादीनां उत्कृष्टावगाहनपर्यन्तानां शरीरावगाहनविकल्पानां स्वाम्यल्पबहत्वगुणकारान् गाथापञ्चकेन प्रदर्शयति अत्र नामैकदेशो नाम्नि प्रवर्तत इति लघुकरणन्यायमाश्रित्य निवेत्यादिवर्णनिगोदवायकायिकादयो जोवा गृह्यन्ते । निगोदवायुतेजोभूकायिकनामानः पञ्च सूक्ष्माः प्रथमकोष्ठे भवन्ति । पुनः वायुतेजो पृथ्वी- १५ कायिकनिगोदप्रतिष्टितप्रत्येकनामानः षट् वादरास्तियक्प्रागवत् क्रमेण द्वितीयकोष्ठे भवन्ति । पुनरुक्ततासामर्थ्यात् एते बादरा एवेति ज्ञातव्यं । पुनरप्रतिष्टितप्रत्येकद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियनामानः पञ्चबादरास्ततीयकोष्ठे भवन्ति । एतेषु षोडशसु आद्यानां सूक्ष्मनिगोदादीनां एकादशानामग्रे तिस्रः पङ्क्तयः कर्तव्याः । तत्रैकैकपङ्क्तेः कोष्ठद्वयं द्वयं ज्ञातव्यम् । सबकी चौड़ाई, लम्बाई और ऊँचाईका कथन आजकल यहाँ प्राप्त नहीं है। इसलिए घनफल २० ही कहा है अर्थात् घनफल करनेपर जो प्रदेशोंका प्रमाण होता है, उसे कहा है ॥९६।। __ आगे सबसे जघन्य अवगाहनासे लेकर उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त शरीरकी अवगाहनाके विकल्पोंको उनके स्वामी, अल्पबहुत्व तथा गुणकारोंको पाँच गाथाओंसे कहते हैं यहाँ 'नामका एकदेश सम्पूर्ण नाममें प्रवर्तित होता है', इस लघुकरणके न्यायको आश्रय कर के 'नि' 'वा' इत्यादि वर्गों के द्वारा निगोदिया, वायुकायिक आदि जीवोंका ग्रहण २५ होता है। सो यहाँ अवगाहनाके भेद जानने के लिए एक यन्त्र बनाओ। उसके प्रथम कोठेमें निगोद, वायुकायिक, तेजस्कायिक, अप्कायिक, पृथिवीकायिक पाँच जीवोंको स्थापित करो। पुनः दूसरे कोठेमें वायुकायिक, तेजस्कायिक, अप्कायिक, पृथ्वीकायिक, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक नामक छह बादर जीवोंको पहलेकी तरह तिर्यक् रूपसे स्थापित करो। पहले कोठेमें जो नाम थे,वे ही नाम दूसरे कोठेमें होनेसे यह जान लेना चाहिए कि ये जीव जो दूसरे ३० कोठेमें लिखे गये हैं, बादर ही हैं। पुनः तीसरे कोठेमें अप्रतिष्ठित प्रत्येक, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय नामक पाँच बादर जीवोंको लिखो। इन सोलहमें-से आद्य सूक्ष्म निगोद आदि ग्यारहकी आगे तीन पंक्तियाँ करनी चाहिए। उनमें से एक-एक पंक्ति के दो-दो कोठे १. म दिवु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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