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________________ गो० जीवकाण्डे एकेंद्रिथक्के चतुः संख्यातगुणितघनांगुल मक्कुं ६१२१२ । द्वींद्रियक्के त्रिसंख्यातगुणितघनांगुलमक्कु ६१११ । त्रद्रिक्के एकसंख्यातगुणितघनांगुलमक्कु ६१ । चतुरिंद्रियक्के द्विसंख्यातगुणितघनांगुलमक्कु ६१२ | पंचेंद्रियक्के पंचसंख्यातगुणितघनांगुल मक्कुं ६१२१२१ ॥ १० १६६ अनंतरं पर्य्याप्तकद्वींद्रियादिगळ जघन्यावगाहप्रमाणमं तत्स्वामिनिर्देशमुमं माडल्बेडि मुंद ५ सूत्रमं पेपर | वितिचदुपण्णजहणणं अणुं घरी कुंथुकाणमच्छी सु । सिच्छयमच्छे बिंदंगुल संख संखगुणिदकमा || ९६ ॥ द्वित्रिचतुःपञ्चपूर्णजघन्यमनुंधरी कुंथुकाणमक्षिकासु । सिक्थकमत्स्ये वृंदाङ्गुलसंख्या संख्यगुणितक्रमाणि ॥ द्वित्रिचतुः पंचेंद्रियपर्याप्त करोळु यथासंख्यमनुंधरी कुंथुकाणमक्षिका सिक्थकमत्स्य में बी जीवंगळोळ जघन्यावगाहमनुक्रळ शरीरावष्टब्धप्रदेशंगळु वृंदांगुल संख्यातैकभागं मोदलागिसंख्यात ६ ६ ६ ६ गुणित क्रममक्कुं 22221 2221 2212 इवरायाम व्यासोत्सेधंगळे मगुपदेश मिल्लल्लि सूत्रोपदिष्टघनफलमने पेळूप ॥ १५ कृतानि तदैकेन्द्रियस्य चतुरसंख्यातगुणितघनाङ्गुलमात्र ६११११ | द्वीन्द्रियस्य त्रिसंख्यातगुणितघनाङ्गुलमात्रं ६११३ त्रीन्द्रियस्य एकसंख्यात गुणितघनाङ्गुलमात्रं ६२ । चतुरिन्द्रियस्य द्विसंख्यातगुणितघनाङ्गुलमात्रं ६११ । पञ्चेन्द्रियस्य पञ्चसंख्यातगुणितघना गुलमात्रं भवति ६१११११ ॥ ९५ ॥ अथ पर्याप्तकद्वीन्द्रियादीनां जघन्यावगाहप्रमाणं तत्स्वामिनिर्देशं चाह द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियपर्याप्तकेषु यथासंख्यं अनुंधरी कुन्थुकाणमक्षिका सिक्थकमत्स्यजीवेषु जघन्यावगाह२० विशिष्टशरीरावष्टव्धप्रदेशप्रमाणं वृन्दाङ्गुलसंख्यातैकभागमादि कृत्वा संख्यातगुणितक्रमेण भवति । ६ त्रि ६ च ६ पं । एषामिदानीं व्यासायामोत्सेधानामुपदेशो नास्ति इति घनफलงง ๆ วง ตุ ६ द्वि ๆ ๆ ๆ ๆ प्रदेशरूप करनेपर एकेन्द्रियके चार बार संख्यात गुणित घनांगुलप्रमाण, दोइन्द्रियके तीन बार संख्यात गुणित घनांगुल प्रमाण, त्रीन्द्रियके एक बार संख्यात गुणित घनांगुल प्रमाण, २५ चतुरिन्द्रियके दो बार संख्यातगुणित घनांगुल प्रमाण, पंचेन्द्रियके पाँच बार संख्यात गुणित घनांगुल प्रमाण प्रदेशोंका उत्कृष्ट अवगाह होता है ||१५|| आगे पर्याप्त दोइन्द्रिय आदिके जघन्य अवगाहना प्रमाण और उसके स्वामियोंका निर्देश करते हैं पर्याप्त दोइन्द्रियों में अनुन्धरी, तेइन्द्रियोंमें कुन्धु, चौइन्द्रियोंमें काणमक्षिका और ३० पंचेन्द्रियोंमें तन्दुलमत्स्यकी जघन्य अवगाहनासे विशिष्ट शरीरके द्वारा रोके गये क्षेत्र के प्रदेशोंका प्रमाण घनांगुलके संख्यातवें भागसे लेकर क्रमसे संख्यात गुणा जानना | सो दोइन्द्रियोंमें चार बार, तेइन्द्रियोंमें तीन बार, चौइन्द्रियोंमें दो बार और पंचेन्द्रियों में एक बार संख्या से भाजित घनांगुल मात्र जघन्य अवगाहनाके प्रदेशोंका प्रमाण होता है । इन १. मल्दपं । २. म मिल्लि । ३. म पेल्देवु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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