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________________ १६९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अवरमप्पुण्णं पढम सोलं पुण पढमबिदिय तदियोली । पुण्णिदरपुण्णयाणं जहण्णमुक्कस्समुक्स्सं ॥९९।। अवरमपूर्ण प्रथमं षोडश पुनः प्रथमद्वितीयतृतीयपंक्तयः पूर्णेतरपूर्णानां जघन्यमुत्कृष्टमुत्कृष्टम् ॥ मोदल मूरु कोष्ठंगळा पदिनारं जीवसमासंगळ्गे अपर्याप्तकजघन्यावगाहनंगळे दरियल्प- ५ डुवुवु। मत मेळिदं प्रथमद्वितीयतृतीयपंक्तिगळोळमों दोंदु पंक्तियोळमरडेरडं कोष्ठंगळोळं यथाक्रमं पर्याप्तापर्याप्तलब्धिअपर्याप्तत्मकमेंब मूरेप्रकारमप्प जीवंगळ्ग जघन्यमुत्कृष्टमुत्कृष्टमवगाहनमक्कुं। प्रथमपंक्तियोळु सूक्ष्मंगळेप्दु बादरंगळावितु पन्नों दक्कुं। पर्याप्तजीवसमासंगळ्गे जघन्यावगाहस्थानंगळप्पुर्वते. द्वितीयपंक्तिगतपन्नों दुमपर्याप्तजीवसमासंगलुत्कृष्टावगाहस्थानंगलप्पुवहांगे तृतीयपंक्तिगतपन्नोंदु पर्याप्तजीवसमासंगळुत्कृष्टावगाहनस्थानंगळप्पुवु एंदितीविभागं १० ज्ञातव्यमक्कुं॥ पुण्णजहण्णं तत्तो वरं अपुण्णस्स पुण्णउक्कस्सं । बीपुण्णजहण्णोत्तियसंखं संखं गुणं तत्तो ॥१०॥ पूर्णजघन्यं ततो वरमपूर्णस्य पूर्णोत्कृष्टं । द्वोंद्रियपूर्णं जघन्यपयंतमसंख्यं संख्यं गुणं ततः ॥ अल्लि बळिकं पत्तनेय कोष्ठगतपर्याप्तपंचजीवसमासंगळ्गे जघन्यावगाहस्थानंगळप्पुल्लिद- १५ तल्पन्नों दनय कोष्ठगतापर्याप्त पंचजीवसमासंगळ्गेयुत्कृष्टावगाहनस्थानंगळप्पुल्लि मुंदणपनेरडनेय कोष्ठगतपर्याप्तपंचजीवसमासंगळगुत्कृष्टावगाहनस्थानंगळप्पुवल्लि दशमकोष्ठगतबादरपर्य्या प्रथमकोष्ठत्रयगतषोडशजीवसमासानां अपर्याप्तजघन्यावगाहा इति ज्ञातव्याः । पुनरुपरि प्रथमद्वितीयतृतीयपङ्क्तिषु एकैकस्यां पङ्क्तौ द्वौ द्वौ कोष्ठौ यथाक्रमं पर्याप्तापर्याप्तलब्ध्यपर्याप्ता इति त्रिविधजीवानां जघन्यमुत्कृष्टमुत्कृष्टं चावगाहनं स्यात् । प्रथमपङ्क्तौ सूक्ष्माः पञ्च बादराः षडित्येकादशानां पर्याप्तजीवसमासानां २० जधन्यावगाहनानि सन्ति । तथा द्वितीयपङ्क्तिगततदेकादशापर्याप्तजीवसमासानामुत्कृष्टावगाहनस्थानानि सन्ति । तथा तृतीयपङ्क्तिगतैकादशपर्याप्तजीवसमासानामुत्कृष्टावगाहनस्थानानि सन्तीत्ययं विभागो ज्ञातव्यः ॥९९।। तदने दशमे कोष्ठे पर्याप्तकपञ्चजीवसमासानां जघन्यावगाहनस्थानानि भवन्ति । ततस्तदने एकादशे कोष्ठे अपर्याप्तकपञ्चजीवसमासानामत्कृष्टावगाहनस्थानानि भवन्ति । तदने द्वादशे कोष्ठे पर्याप्तकपञ्चजीव । पहले तीन कोठोंमें स्थापित सोलह जीवसमास अपर्याप्त जीवोंकी जघन्य-अवगाहना- २५ रूप जानना । आगे ऊपरसे पहली, दूसरी, तीसरी पंक्ति में एक-एक पंक्ति के दो-दो कोठे हैं। वे क्रमसे पर्याप्त, अपर्याप्त, और पर्याप्त जीवोंकी जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट अवगाहनाके हैं। अर्थात् ऊपरसे प्रथम पंक्तिके दो कोठोंके ग्यारह स्थान पर्याप्त जीवोंकी जघन्य अवगाहनाके हैं। उससे नीचेकी दूसरी पंक्ति के दोनों कोठोंके ग्यारह स्थान अपर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट अवगाहनाके हैं। उससे नीचेको पंक्तिके दोनों कोठोंके ग्यारह स्थान अपर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट १० अवगाहनाके हैं ॥१९॥ उससे आगे दसवें कोठे में याप्तक पाँच जोवसमासोंके जघन्य अवगाहनास्थान हैं । उससे आगे ग्यारहवें कोठेमें अपर्याप्तक पांच जीवसमासोंके उत्कृष्ट अवगाहना स्थान हैं। उससे आगे बारहवें कोठे में पर्याप्तक पाँच जीवसमासोंके उत्कृष्ट अवगाहनास्थान हैं। १. म मेगणिदं। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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