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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १४१ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविंदद्वंद्व वंदनानंदित- पुण्य पुंजायमान श्रीमद्राय राजगुरु - भूमंडलाचार्यं महावादवादीश्वर रायवादिपितामहसकल विद्वज्जनचक्रवत्तिश्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्र - वत श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्ण विरचित गोम्मटसार कर्नाटक वृत्तिजीवतत्व प्रदीपिकेयोलु जोवकांडव शतिप्ररूपणंगलोय मोद्दिष्टगुणस्थानप्ररूपण महाधिकार निरूपितमाय्तु ॥ सदाशिवमत, सांख्यमत, मस्करी, बौद्धमत, नैयायिकमत, वैशेषिक मत, ईश्वरवादी, और माण्डलितको दोषयुक्त बतलाने के लिए उक्त विशेषण कहते हैं । कहा है सदाशिवमतवादी ईश्वरको सदा कर्मसे रहित मानता है । सांख्य मुक्त जीवको सुख से रहित मानता है । मस्करी मुक्तोंका पुनः संसार में आगमन मानता है । बौद्ध क्षणिक और यौन मुक्तात्माको निर्गुण मानते हैं । ईश्वरवादी ईश्वरको कृतकृत्य नहीं मानते । और मण्डलीक मत आत्माको सदा ऊर्ध्वगामी मानता है ॥ ६९ ॥ १० इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्य के पुंजस्वरूप राजगुरु भूमण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोभित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटकवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाको अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीका जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें से गुणस्थान प्ररूपणा नामक प्रथम महा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥ १॥ Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only १५ www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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