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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३३ पय्यंतमा दोंदु चयमं कळेयुत्तं पोगलु रूपोनावळिमात्रचयंगळं उदयावलिप्रथमनिषकोळ स। १२-१६-४ कळे युत्तिरल्तच्चरमनिषेकप्रमाणमक्कु १ । ४ ओ प = a। ४ । १६ + ४ मिल्लि मेलण गुण स ०१२-=a श्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातलोकबहुभागमं ११४ ओ। प= a सम्यक्त्वोत्पत्तिय गुणश्रेण्यायाममंतर्मुहर्त्तमात्रसमयंगळोळ प्रतिसमयमसंख्यातगुणितक्रमदिदं निषेकरचन माडल्पडुगुमदतनगुणश्रेणिप्रथमसमयदोळु यावत्तावत्प्रमाणमो दु १ द्वितीयसमयदोळदं नोडलसंख्यातगुणित- ५ शलाकंगळु ४ नाल्कितसंख्यातगुणशलाकाक्रमदि गुणश्रेणिचरमसमयदोळतद्योग्यासंख्यातगुणशलाकेगळक्कु मवक्के संदृष्टि ६४ मो प्रयमादिसमयशलाकेगळेल्लमं कूडिदोडे संदृष्टि ८५ । स । । १२-१६ १ ७ । ४ । उ । H = ४ १६-४ एवमुदयावलिवरमनिषेकपर्यन्तमेकैक चये अपनीते रूपोनावलिमात्रचयेषु स । १२-१६-४ उदयावलि प्रयमनिषकेषु अपनीतेषु तच्चरमनिषेकप्रमाणं भवति ७ । ४ । उ । १ = a । ४ । १६-४ स । । १२-=a इतः परं गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातलोकबहभागमात्र ७।४ । उ । १ = सम्यक्त्वोत्पत्ति- १० गुणश्रेण्यायामान्तर्मुहर्तमात्रसमयेषु प्रतिसमयमसंख्यातगुणितक्रमेण निषेकरचना क्रियते तद्यथा-गुणश्रेण्यायामप्रथमसमये यावद् द्रव्यं निक्षिप्यते तत्प्रमाणं शलाका एका १, द्वितीयसमये ततोऽसंख्यातगुणितशलाकाश्चतस्रः ४ । एवमसंख्यातगुणितशलाकाक्रमेण गुणश्रेणिचरमसमये तद्योग्यासंख्यातगुणितशलाकाः स्युः, तत्संदृष्टिः ६४ । एक आवली प्रमाण कालमें पहले जो आवलीके निषेक थे, उनके साथ अपना फल देकर खिर जाता है । सो आवलीके प्रथम आदि समयमें कितना-कितना द्रव्य उदयमें आता है,यह आगे १५ कहते हैं-एक समय सम्बन्धी जितना द्रव्यका प्रमाण होता है, उसका नाम निषेक है। उदयावलीमें दिये गये द्रव्यको उदयावली कालके समयोंके प्रमाणसे भाग देनेपर मध्यके समय सम्बन्धी द्रव्यरूप मध्य घनका प्रमाण आता है। उसको एक कम आवलीके आधे प्रमाणसे हीन निषेक भागहार अर्थात् गुणहानि आयामके प्रमाणसे दूना जो दो गुणहानिका प्रमाण-उससे भाग देनेपर एक चयका प्रमाण होता है। इस चयको दो गुणहानिसे गुणा २० करनेपर उदयावलीके प्रथम समय सम्बन्धी प्रथम निषेकका प्रमाण आता है। उसमें एक चय घटानेपर उदयावली के द्वितीय समय सम्बन्धी द्वितीय निषेकका प्रमाण आता है। इसी तरह क्रमसे उदयावलीके अन्तिम निषेक पर्यन्त एक-एक चय घटानेपर एक कम आवली प्रमाण चय उदयावलीके प्रथम निषेकमें-से कम होनेपर उदयावलीके अन्तिम निषेकका प्रमाण होता है। २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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