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________________ १३४ गो० जीवकाण्डे "प्रक्षेपयोगोधुतमिपिंडः प्रक्षेपकाणां गुणको भवेत्सः" एंबी न्यायदिदं प्रक्षेपशलाकायोग स१२ = २ रार्शाियदं ८५। मिश्रपिंडराशियं भागिसि १।४ ओ-प = 2 | ८५ दी राशिप्रक्षेपकंगळगे गुणकमक्कुमदु तंतम्म प्रमाणक्क संदृष्टिगळप्प गुणकारंगळो दु नाल्कु पदिनाररुवत्त नाल्कुर्गाळ स०१२ = ३१ गुणियिसिदोडे प्रथमनिषक ७।४ ओ प = ८५ मिदं नोडलु द्वितीयनिषेकमसंख्यातगुणं स१२:०४ ५ ७।४ । ओ प= ८५ इंतसंख्यातगुणितक्रमदिदं नडदु गुणश्रेणिचरमनिषेक सर्वोत्कृष्टमिदु a स । १२ = ०६४ ___स १२-प ७।४ ओ प = ० ८५ इल्लि मेलुपरितनस्थितिद्रव्यमिदु ७।४। ओ। प इदं नानागुणहानि एताः प्रथमादिसमयसर्वशलाकाभिमिलितास्तदा संदृष्टिः ८५। अनेन शलाकायोगेन मिश्रपिण्डराशि भक्त्वा स । १२- I =a स । १२-1=a। १ ७।४। उप =८५ संदृष्टिगुणकारेण एकेन गुणिते प्रथमनिषेक: ७।४। उ प = a। ८५ स । १२-1=a | ४ चतुभिर्गुणिते द्वितीयनिषेक: ७ । ४ । उ । प । = । ८५ षोडशभिर्गुणिते तृतीयनिषेक: स ।। १२-=al १६ स । । १२-1 = 1 ६४ १० ७।४ । उ। प । = 2 । ८५ चतुःषष्ट्या गुणिते चरमनिषक: ७ । ४ । उ प। = a । ८५ एवम व विशेषार्थ उक्त कथनको अंकसंदृष्टिसे स्पष्ट करते हैं जैसे उदयावलीमें दिये हुए द्रव्यका प्रमाण दो सौ, गच्छ आवलीका प्रमाण आठ। एक-एक गुणहानिमें जो निषे कोंका प्रमाण सो गुणहानि आयाम । उसका प्रमाण आठ. उसको दना करने पर दो गणहानिका प्रमाण सोलह, सौ सर्वद्रव्य दो सौको आवली प्रमाण गच्छ आठका भाग देनेपर पचीस १५ आये सो मध्यघनका प्रमाण हुआ। इसको एक कम आवलीका आधा साढ़े तीन, उसे निषेकहार सोलहमें घटानेपर साढ़े बारह रहे, उससे भाग देनेपर दो आये। वही चयका प्रमाण जानना। इसको दो गणहानि सोलहसे गणा करनेपर बत्तीस आये. यही प्रथम निषेकका प्रमाण है। इसमें एक-एक चय घटानेपर द्वितीय आदि निषेकोंका तीस आदि प्रमाण होता है। इस तरह एक कम आवली प्रमाण चयके हुए चौदह, उन्हें प्रथम निषेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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