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________________ १३० गो० जीवकाण्डे नोडलसंयत सम्यग्दृष्टिगुणस्थानगुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडलु देशसंयतनगुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडल् सकलसंयतनगुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडल - नंतानुबंधिकषायविसंयोजकन गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडल नंतानुबंधिकषाय संयो कन गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडल दर्शन मोहक्षपकन गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यात५ गुणमदं नोडल्कषायोपशमकत्रयद गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडलुपशांतकषायन गुणश्रेणि निर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडलु क्षपकत्रयद गुणश्रेणिनिजं राद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडल क्षीणकषायन गुणश्रेणि निर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडलु स्वस्थानकेवंलि जिनगुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणमदं नोडल्समुद्घातके वलिजिनन गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुर्णामतेकादशस्थानंगळोळ गुणश्रेणि निर्जराद्रव्यक्के प्रतिस्थानमसंख्यातगुणितत्वं पेळपट्टविल्लि गुणश्रेणि१० निर्जराद्रव्य प्रमाण में तुटे 'दोडे - अनादिसंसार निबंधन बंधानुबंधसंबंधदि संबंधिसिद्द जगच्छ्रेणिघनप्रमाणैकजीव प्रदेशंगळोळ ज्ञानावरणादिमूलोत्तरप्रकृतिसत्वद्रव्यं त्रिकोण रचनाभिप्रार्यादिद किचिन्न्यू नद्वयर्द्धगुणहानि मात्र समयप्रबद्धप्रमाणमक्कु स ० १२ मी द्रव्यमनायुर्वज्जितज्ञानावरणादिकम्मंगळगेळवकं पसलोंदु ज्ञानावरणीयक द्रव्य मिनितक्कु ७ मिदं देशघाति स १२ ततः देश संयतस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यं असंख्यातगुणम् । ततः सकलसंयतस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यं असंख्यात - १५ गुणम् । ततोऽनम्तानुबन्धिकषायविसंयोजकस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यं असंख्यातगुणम् । ततो दर्शनमोहक्षपकस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणम् । ततः कषायोपशमकत्रयस्य गुणश्र णिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणम् । तत उपशान्तकषायस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणम् । ततः क्षपकत्रयस्य गुणश्रेणि निर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणम् । ततः क्षीणकषायस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणम् । ततः स्वस्थानकेवलिजिनस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणम् । ततः समुद्धात केवलिजिनस्य गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यमसंख्यातगुणं इत्येकादशसु स्थानेषु गुणश्रेणि२० निर्जराद्रव्यस्य प्रतिस्थानम संख्यातगुणितत्वमुक्तम् । तद्गुणश्रेणिनिर्जराद्रव्यप्रमाणं उच्यते । तद्यथा अनादिसंसारनिबन्धनबन्धानुबन्धसंबन्धेन संबद्धं जगच्छ्रेणिघनप्रमाणेकजीव प्रदेशेषु ज्ञानावरणादिमूलोत्तरप्रकृतिसत्त्वद्रव्यं त्रिकोण रचनाभिप्रायेण किंचिन्न्यूनद्वयधं गुणहानिमात्र समयप्रबद्धप्रमाणं (स १२ ) इदमायुर्वजितसतकर्मणां सप्तभिर्भक्त्वा दत्ते ज्ञानावरणीयस्यैतावत् ( स । १२ ) इदं देशघातिसर्वघातिविभागार्थं जिनदृष्टानन्तेन ७ उससे दर्शनमोहके क्षय करनेवालेके गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे २५ कषायों का उपशमं करनेवाले अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती जीवोंके गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्ती जीवके गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है । उससे क्षपकश्रेणिवाले अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती जीव के गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है । उससे क्षीणकषाय गुणस्थानवर्ती जीव के गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे समुद्धात न करते हुए स्वस्थान केवली जिनके ३० गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे समुद्घात करनेवाले केवली जिनके गुणश्रेणिनिर्जराका द्रव्य असंख्यात गुणा है । इस प्रकार ग्यारह स्थानों में गुणश्रेणिनिर्जरा द्रव्यको प्रत्येक स्थानमें असंख्यातगुणा असंख्यातगुणा कहा । अब उस गुणश्रेणिनिर्जरा द्रव्यका प्रमाण कहते हैं । वह इस प्रकार है - अनादि संसारका कारण जो बन्ध, उस बन्धकी परम्पराके सम्बन्धसे बन्धरूप हुआ जगत्श्रेणिके घनप्रभाण एक जीवके प्रदेशों में स्थित ३५ ज्ञानावरण आदि मूल और उत्तर प्रकृतियोंके सत्तारूप द्रव्य त्रिकोण रचनाके अभिप्राय से, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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