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________________ १२० गो० जीवकाण्डे होति यणियट्टिणो ते पडिसमयं जस्सि एक्कपरिणामा। विमलयर-झाणहुतवहसिहाहि गिद्दड्ढ-कम्मवणा ॥५७॥ भवन्त्यनिवृत्तयस्ते प्रतिसमयं यस्मादेकपरिणामा । विमलतरध्यानतवहशिखाभिनिर्दग्धकर्मवनाः॥ आ जीवंगळनिवृत्तिकरणर दितु सम्यक्कागरियल्पडुवरु । अदे तन न विद्यते निवृत्ति५ विशुद्धिपरिणामभिन्नत्वं येषां तेऽनिवृत्तयः ये दितु निरुक्त्यादिवमावदोदु कारणदिदमायेल्ला जोवंगळ निवृत्तिकरणकालप्रथमसमयं मोदलगोंडु समयं समयंप्रति वर्तमानरुगळमन्योन्यमेकादृशपरिणामरे पप्परु। अदु कारणदिदमनिवृत्तिगळे दितु तात्पर्यमरियल्पड़गं। ___मत्तमपूर्वकरणकालचरमसमयत्तिविशुद्धिपरिणामंगळु जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नंगळु असंख्यातलोकमात्रंगळिरुतिक्र्कुमवेल्लमं नोडलसंख्यातलोकमात्रं षट्स्थानंगळनंतरिसि अनिवृत्ति१० करणप्रथमसमयदोळु होनाधिकभावरहितंगळप्प विशुद्धिपरिणामंगळनंतगुणंगळ्पुटटुववं नोडलु द्वितीयसमयदोळु विशुद्धिपरिणामंगळुमनंतगुणंगळप्पवु। इंतु पूर्वपूर्वसमयत्तिविशुद्धिपरिणामंगळणिदं जीवंगळुत्तरोत्तरसमयत्तिगळु विशुद्धिपरिणामंगळुमनंतानंतगुणितक्रमदिदं वर्द्धमानंगळागि नडेववु। एंदितिविशेष प्रवचनदोळु प्रतिपादितमरियल्पडुगुं। आ अनिवृत्तिकरण परिणामंगळनुकळ जीवंगळु विमलतरध्यानहुतवह शिखिगलिदं निर्दग्धकर्मवनरें बिदरिदं चारित्र१५ मोहोपशमनक्षपणलक्षणमनिवृत्तिकरणपरिणामकार्य सूचिसल्पटु । ते जीवा अनिवृत्तिकरणा इति सम्यग्ज्ञातव्याः । न विद्यते निवृत्तिः विशुद्धिपरिणामभेदो येषां ते अनिवृत्तय इति निरुक्तयाश्रयणात् । ते सर्वेऽपि अनिवृत्तिकरणा जीवाः तत्कालप्रथमसमयमादि कृत्वा प्रति मनन्तगुणविशुद्धिवृद्धया वर्धमानेन हीनाधिकभावरहितेन विशुद्धिपरिणामेन प्रवर्तमानाः सन्ति यतः, ततः प्रथमसमयवर्तिजीवविशुद्धिपरिणामेभ्यो द्वितीयसमयतिजीवविशुद्धिपरिणामा अनन्तगुणा भवन्ति । एवं २० पूर्वपूर्वसमयवति विशुद्धिपरिणामेभ्यो जीवानामुत्तरोत्तरसमयतिविशुद्धिपरिणामा अनन्तानन्तगुणितक्रमण वर्धमाना भूत्वा गच्छन्ति इत्ययं विशेषः प्रवचने प्रतिपादितः प्रत्येतव्यः । तदनिवृत्तिकरणपरिणामयुतजोवाः विमलतरध्यानहुतवहशिखाभिनिर्दग्धकर्मवना भवन्ति । अनेन चारित्रमोहस्य उपशमनं क्षपणं च अमिवृत्तिकरणजीवोंके उत्तरोत्तर समयवर्ती विशुद्ध परिणाम अविभागी प्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा क्रमसे अनन्तगुणे-अनन्तगुणे बढ़ते हुए होते हैं ! २५ सारांश यह है कि अनिवृत्तिकरणमें एक समयवर्ती जीवोंके परिणामोंमें समानता है। तथा ऊपर समयवर्तियोंके अनन्तगुणी विशुद्धता बढ़ती हुई है। उसका उदाहरण-जैसे जिनको अनिवृत्तिकरण आरम्भ किये पाँचवाँ समय हुआ, उन त्रिकालवर्ती अनेक जीवोंके विशुद्ध परिणाम समान ही होते हैं, हीन-अधिक कभी भी नहीं होते। वे विशुद्ध परिणाम जिन जीवोंको अनिवृत्तिकरण आरम्भ किये चौथा समय हुआ है,उनके विशुद्ध परिणामोंसे ३० अनन्तगुणे विशुद्ध हैं। इनसे जिनको अनिवृत्तिकरण आरम्भ किये छठा समय हुआ है, उनके अनन्तगुणे विशुद्ध परिणाम होते हैं। ऐसे ही आगे भी सर्वत्र जानना। वे अनिवृत्तिकरण परिणामवाले जीव विमलतर ध्यानरूपी अग्निकी ज्वालासे कर्मरूपी वनको जलानेवाले होते हैं। इससे यह सूचित किया है कि अनिवृत्तिकरण परिणामोंका कार्य चारित्र मोहका उपशमन और क्षपण करना है ।।५७।। ३५ १ म णाममनुल्ल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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