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________________ कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ११९ प्रवलिगळरडु बंधददं व्युच्छिन्नंगळागुत्तिरलु अंत बुदेने दोडे उपशमश्रेण्या रोहणकाऽपूर्वं करणंगे प्रथमभागदोळ मरणमिल्ले बागममंट बुंदस्थ । आ अपूर्वकरणगुणस्थानवत्तगळु उपशमश्रेण्यारूढरुदोडे चारित्रमोहनीयमनियम दिदमुपशमिसुवरु । क्षपकश्रेण्यारूढरागुत्तिर्द क्षपकरु तच्चारित्रमोहनीयमं नियर्मादिदं क्षपियिसुवरु । क्षपकश्रेणियोळेलियं मरणं नियमदद मिल्ल || अनंतर निवृत्तिकरणगुणस्थानस्वरूपप्ररूपणात्थं गाथाद्वयमं पदपरु । एक्aम्म कालसमये संठाणादीहि जह णिव ंति । विति तचिय परिणामेहिं मिहो जे हु ||५६ ॥ एकस्मिन् कालसमये संस्थानादिभिर्यथा निवर्तन्ते । न निवर्तन्ते तथैव च परिणामैप्रियो ये खलु || अनिवृत्तिकरणकालदोळ वोदु समयदोळु वर्त्तमानरप्प त्रिकालगोचरनानाजी बंगळु एंतु संस्थानवर्णवयोऽवगाहनज्ञानोपयोगादिगळिदं परस्परं भेयरप्परले विशुद्धिपरिणामंगळद भेद्यरल्लरु | आर्केलंबरु स्फुटमागि यारोहका पूर्वकरणस्य प्रथमभागे मरणं नास्तीति आगमोऽस्तीत्यर्थः । ते अपूर्वकरणगुणस्थानवर्तिनः उपशमश्रेणिमारोहन्ति तदा चारित्रमोहनीयं नियमेन उपशमयन्ति । क्षपकश्रेणिमारुह्यमाणाः क्षपका: तच्चारित्रमोहनीयं नियमेन क्षपयन्ति । क्षपकश्रेण्यां सर्वत्र मरणं नियमेन नास्ति ॥५५॥ अथानिवृत्तिकरणगुणस्थानस्वरूपं गाथाद्वयेन प्ररूपयति ये अनिवृत्तिकरणकाले एकस्मिन् समये वर्तमानास्त्रिकालगोचरा नानाजीवा यथा संस्थानवर्णवयोवगाहनज्ञानोपयोगादिभिः परस्परं भिद्यन्ते तथा विशुद्धिपरिणामैन भिद्यन्ते खलु-स्फुटं ॥५६॥ चारित्रमोहनीयका उपशम करते हैं । तथा क्षपक श्रेणि पर आरोहण करनेवाले क्षपक नियमसे चारित्र मोहनीयका क्षपण करते हैं । क्षपक श्रेणिमें तो सर्वत्र नियमसे मरण नहीं होता । उपशम श्रेणिमें अपूर्वकरणके प्रथम भागमें मरण नहीं है, किन्तु द्वितीयादि भागों में मरण सम्भव है ||५५|| Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only १० १५ आगे अनिवृत्तिकरण गुणस्थानका स्वरूप दो गाथाओंसे कहते हैं २५ अनिवृत्तिकरणकालके एक समय में वर्तमान त्रिकालवर्ती नाना जीव जैसे शरीरका आकार वर्ण, वय, अवगाहना, ज्ञानोपयोग आदिसे परस्पर में भेदको प्राप्त होते हैं, उस प्रकार विशुद्ध परिणामोंके द्वारा भेदको प्राप्त नहीं होते । उन जीवोंको अनिवृत्तिकरण सम्यक् रूपसे जानना । जिनके निवृत्ति अर्थात् विशुद्ध परिणामों में भेद नहीं है, वे अनिवृत्तिकरण हैं - इस निरुक्ति के आश्रय से उक्त बात सिद्ध है । इसका खुलासा इस प्रकार जानना । जिन जीवोंको अनिवृत्तिकरण आरम्भ किये पहला दूसरा आदि समान समय हुआ है, उन त्रिकालवर्ती अनेक जीवों के परिणाम समान ही होते हैं । जैसे अधःकरण अपूर्वकरण में समान अथवा असमान होते हैं, वैसे यहाँ नहीं हैं। तथा अनिवृत्तिकरण कालके प्रथम समय से लेकर प्रतिसमय वर्तमान सर्व जीव हीन अधिक परिणामसे रहित समान विशुद्ध परिणाम वाले होते हैं । वहाँ जो प्रतिसमय अनन्तगुणे - अनन्तगुणे विशुद्धि परिणाम होते हैं, उनसे दूसरे समय में होने वाले विशुद्ध परिणाम अनन्तगुणे हैं। इस प्रकार पूर्व-पूर्व समयवर्ती विशुद्ध परिणामों ३० १. मदेनेने । २. म ंगलाद रे । ३. मवदों दु । २० www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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