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________________ १०४ गो० जीवकाण्डे चरमखंडोत्कृष्टपरिणामविशुद्धिमोदल्गोंडु तत्कांडकचरमसमयचरमखंडोत्कृष्टपरिणामविशुद्धि . पय्यंतमोदुत्कृष्टखंडोत्कृष्ट परिणाम विशुद्धिगळनंतानंतगुणितंगळागि नडेववर मध्यदोळु जघन्योत्कृष्टपरिणामविशुद्धिगळनंतानंतगुणितंगळ विवक्षितंगळेदरिवुदु। इंतप्प विशुद्धि विशुद्धि विशिष्टाधःप्रवृत्तकरणपरिणामंगळोळु गुणश्रेणिनि रेयं गुणसंक्रमणमं स्थितिकांडकोत्करणमुं ५ अनुभागकांडकोत्करणमुमेंबी नालकावश्यकंगळसंभविसदेक दोडे तत्परिणामंगळगतप्प कार्याकरण सामर्थ्यसंभवाऽभावमप्पुरिदं केवलं प्रतिसमयमनंतगुणविशुद्धिवृद्धियु स्थितिबंधापसरणम सातादिप्रशस्तप्रकृतिगळ्गे प्रतिसमयमनंतगुणानुभागवृद्धियिदं चतुस्थानबंधमुमसाताद्यप्रशस्तप्रकृतिगळ्गे प्रतिसमयमनंतगुणहानियिदं निबकांजीरसदृशद्विस्थानानुभागबंधमुमेंबी नाल्कावश्यकंगकोळवु इदुक्तार्थोपसंहारोपयोगीरचने मत्तमिल्लि एक जी. एक जी. ना। जी ना। जी एक काल नाना का. एक का. ना। का परिणाम परिणाम . २१११ १०८ ई रचनाभिप्रायमं सुगममतेने एकजीवमेकालमें बिदु विवक्षिताधःप्रवृत्तकरणपरिणामपरिणतैक१५ जीवक्के परमार्यवृत्तियिदं कालमेकसमयमेयक्कु। एकजीव नानाकालमें बुदु अधःप्रवृत्तकरण कालांतम्मुहर्ताऽसंख्यातसमयंगळनुक्रमदिदमेकजीवनिदं पोर्दल्पड़ववप्पुरिंदमिनित समयं एवमहिगत्या जघन्यादुत्कृष्टं उत्कृष्टाज्जघन्यमित्यनन्तगुणितक्रमेण परिणामविशुद्धीर्नीत्वा चरमनिर्वर्गणकाण्डकचरमसमयप्रथमखण्डजघन्यपरिणामविशुद्धि रनन्तानन्तगुणा । कुतः ? पूर्वपूर्वविशु द्धितोऽनन्तानन्तगुणत्वस्य सिद्धत्वात् । ततश्चरमनिर्वर्गणकाण्डकप्रथमसमयचरमखण्डोत्कृष्टपरिणामविशद्धिरनन्तगणा। ततस्तदुपरि चरमनिर्वर्गणकाण्डकचरमसमयचरमखण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्धिपर्यन्ता उत्कृष्टखण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्धयोऽनन्तानन्तगुणितक्रमेण गच्छन्ति । तन्मध्ये या जघन्योत्कृष्टपरिणामविशद्धयोऽनन्तानन्तगणिताः सन्ति ता न विवक्षिता इति ज्ञातव्यम् । एवंविधविशुद्धिविशिष्टाघःप्रवृत्तकरणपरिणामेषु गुणश्रेणिनिर्जरा गुणसंक्रमणं स्थितिकाण्डकोत्करणमनुभागकाण्डकोत्कीर्णनमिति चत्वारि आवश्यकानि न संभवन्ति तत्परिणामानां तादशकार्यकरणसामर्थ्याभावात् । खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धता अनन्तगुणी है। इस तरह जैसे सर्पकी चाल इधरसे उधर, उधरसे २५ इधर पलटती हुई होती है, वैसे ही जघन्यसे उत्कृष्ट और उत्कृष्ट से जघन्य इस तरह अनन्त गुणी विशुद्धता क्रमसे प्राप्त करना। पीछे अन्तके निर्वर्गणाकाण्डकके अन्त समय सम्बन्धी प्रथम खण्डकी जघन्य परिणाम विशुद्धता अनन्तानन्तगुणी है। क्योंकि पूर्व-पूर्व विशुद्धतासे अनन्तानन्तगुणापना सिद्ध है। उससे अन्तके निर्वर्गणा काण्डकके प्रथम समय सम्बन्धी उत्कृष्ट खण्डकी परिणामविशुद्धता अनन्तगुनी है। उससे उसके ऊपर अन्तके निर्वगण३० काण्डकके अन्त समय सम्बन्धी अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता पर्यन्त उत्कृष्ट खण्डकी उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता अनुक्रमसे अनन्तानन्तगुणी प्राप्त होती है। उनमें जो जघन्यसे उत्कृष्ट परिणामोंकी विशुद्धता अनन्तानन्त गुणी है,उनकी यहाँ विवक्षा नहीं है। इस प्रकार विशेष विशुद्धताको लिये हुए अधःप्रवृत्तकरणके परिणामोंमें गुणश्रेणी निर्जरा, गणसंक्रमण, स्थितिकाण्डकोत्करण, अनभागकाण्डकोत्करण ये चार ३५ नहीं होते हैं,क्योंकि उन परिणामोंमें गुणश्रेणी निर्जरा आदि करने की शक्तिका अभाव है। उनमें केवल प्रथम समयसे लेकर प्रतिसमय अनन्तगुणी अनन्तगुणी विशुद्धताकी वृद्धि होती वश्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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