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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१०५ गळप्पुवु २१११ नानाजीवमेककालमेंबुदु विवक्षितकसमयदोळधःप्रवृत्तकरणकालासंख्यातसमयंगळोळे यथासंभवमागि नरें टुसमयस्थानकंगळोळु संग्रहमाद जीवंगळ विवक्षेयिंदमेककालमें बुदु १०८ समयंगरियल्पडुवत् ।
नानाजीवं नानाकालमें बुदु अधःप्रवृत्तकरणपरिणामंगळ संख्यातलोकमानंगळु :
अंकसंदृष्टयपेक्षयाऽधःकरणरचना।
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किन्तु केवलं प्रतिसमयमनन्तगण विशद्धिवद्धिः स्थितिबन्धापसरणं सातादिप्रशस्तप्रकृतीनां प्रतिसमयमनन्तगुणवृद्धया चतुःस्थानानुभागबन्ध-असाताद्यप्रशस्तप्रकृतीनां प्रतिसमयमनन्तगुणहान्या निम्बकाञ्जोरसदशद्विस्थानानभागबन्धश्चेति चत्वार्यावश्यकानि संभवन्ति । एतदुक्तार्थोपयोगिनी रचना लिख्यते
है। स्थितिबन्धापसरण होता है अर्थात् पहले जिस परिमाणको लेकर कर्मोंका स्थितिबन्ध होता था, उससे घटता-घटता स्थितिबन्ध होता है। तथा सातावेदनीय आदि प्रशस्त १५ प्रकृतियोंका प्रतिसमय अनन्तगुणा अनन्तगुणा बढ़ता हुआ गुड़, खाँड़, शकरा अमृतके समान चतुःस्थान लिये अनुभागबन्ध होता है। तथा असातावेदनीय आदि अप्रशस्त प्रकृतियोंका प्रतिसमय अनन्तगुणा अनन्तगुणा घटता हुआ नीम और कांजीर केवल द्विस्थान लिये अनुभागबन्ध होता है, विष और हालाहलरूप नहीं होता। अब उक्त कथनको अंक संदृष्टि से स्पष्ट करते हैं
एक-एक | अंक संदृष्टि अपेक्षाअधःकरण रचना
समय सम्बन्धी चार-चार || खण्डोंकी तिर्यक् रचना |
अनुकृष्टि रूप समय प्रथम, द्वितीय तृतीय चतुर्थ | की ऊध्वं खण्ड खण्ड खण्ड खण्ड सोलह रचना
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