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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१०१ प्पिनितु परिणामंगळ रूपाधिकसूच्चंगुलासंख्यातेकभागधनराशियं' रूपाधिकसूच्यंगुलासंख्यातकभागवगराशियि गुणिसिदिनितु परिणामव्यक्तिगळ्गे १-१-१-१-१ यो दु षट्स्थानवारं पडयल्प
२।२।२।२।२
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डुत्तिरलु मागळिनितु परिणामंगळगे ४ । १ इनितु षट्स्थानवारंगळक्कुमेंदितनुपातत्रैराशिकविधानदिदं बंद लब्ध षट्स्थानवारंगळक्कु = a मितप्पसंख्यातलोकवारषट्स्थानपतित वृद्धि
२।२।२।२।२
aaaaa यिदं वर्द्धमानगळ प्रथमसमयप्रयमखंडपरिणामंगळ संख्यातलोकमात्रंगळवे द्वितीयसमयदोळ
भवन्ति = a अमी च परिणामा जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नानां रूपाधिकसूच्यंगुलासंख्यातकभागस्य घनगुणित
४।१
२ । २ । २ । २ । २ । तद्वर्गमात्रपरिणामव्यक्तीनां । । । यद्येकषट्स्थानवारो लभ्यते तदैतावतां परिणामानां ४ १ १५ कियन्तः षट्स्थानवारा लभ्यन्ते इति त्रैराशिकलब्ध = a असंख्यातलोकमात्रषट्स्थानगतवृद्ध या
४।१।२ । २ । २ । २ । २
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की अपेक्षा जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेदको लिये हुए हैं। एक अधिक सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागका घन करके उसके ही वर्गका गुणा करनेसे जो प्रमाण होता है ,उतने परिणामोंमें यदि २० एक बार षट्स्थान होता है तो संख्यात प्रतरावलीसे भक्त असंख्यात लोकप्रमाण प्रथम समय सम्बन्धी प्रथम खण्डके परिणामोंमें कितनी बार षट्स्थान होगा? इस प्रकार त्रैराशिक करनेपर प्राप्त हुए असंख्यात लोकवार षट्स्थानोंको प्राप्त विशुद्धताकी वृद्धिसे वर्धमान हैं।
___इस कथनका आशय ऐसा है कि आगे ज्ञानमार्गणामें पर्याय समास श्रुतज्ञानका वर्णन करते हुए जैसे अनन्त भागवृद्धि आदि षट्स्थान पतित वृद्धिका कथन करेंगे,उसी प्रकार यहाँ २५ अधःप्रवृत्तकरण सम्बन्धी विशुद्धतारूप कषाय परिणामोंमें भी क्रमसे अनन्त भाग, असंख्यात भाग, संख्यातभाग, संख्यात गुण, असंख्यात गुण, अनन्त गुण वृद्धिरूप षट्स्थान पतित वृद्धि होती है। उस अनुक्रम के अनुसार एक अधिक सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागके घनको उसीके वगसे गुणा करो अर्थात् एक अधिक सूच्यंगुलके असंख्यातवे भागको पाँच जगह रखकर परस्पर में गुणा करो, जो प्रमाण आवे उतने विशुद्धि परिणामोंमें एक बार षट्स्थान । पतित वृद्धि होती है। इस तरह क्रमसे प्रथम परिणामसे लेकर इतने इतने परिणाम होनेके पश्चात् एक एक बार षट्स्थान वृद्धि पूर्ण होते असंख्यात लोकमात्र बार षट्स्थान पतित वृद्धि होनेपर उस प्रथम खण्डके सब परिणामोंकी संख्या पूर्ण होती है। अतः असंख्यात
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१. म राशियं सूच्यं गुलासंख्यातकभागमात्ररूपाधिक-सूच्यं गुलासंख्यातकभागगुणितपरिणाम । २. म गलचयाधिकंगलु प्र.। ३. ब भिन्ना। ४. ब मात्रास्य यं ।
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