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________________ १०० गो० जीवकाण्डे डंगळ मवेल्लवं तंतंमधस्तनसमयपरिणामंगळोडने सादृश्याभावदत्तणिदं विशदृशंगळु । इदु लांगलरचनेयल्लियधःप्रवृत्तकरणपरिणामंगळोळ प्रथमसमयपरिणामखंडंगळोळगे प्रथमखंडपरिणा = ।२१११।१।२ मंगळु असंख्यातलोकमात्रंगळु २१११।२१११।१।१।२१११२ इवनपत्तिसिदोडे संख्यातप्रतरावलिभाजितासंख्यातलोकमात्रमक्कु । ४ । १ मिवु जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नंगळविसदृशानि इयं लांगलरचनेत्युच्यते । तत्राधःप्रवृत्तकरणपरिणामेषु प्रथमसमयपरिणामखण्डानां मध्ये प्रथमखण्डपरिणामा असंख्यातलोकमात्रा: za। २१११। १ २१११।२१ । २ । ।२११।२ अपवतितास्तदा संख्यातप्रतरावलिभक्ताऽसंख्यातलोकमात्रा ५४ ५५ ५६ इसलिए इसको अंकुश रचना कहते हैं। तथा दूसरे समयसे लेकर द्विचरम समय पर्यन्त सम्बन्धी अन्तिम-अन्तिम खण्ड और प्रथम समय सम्बन्धी प्रथम खण्डके बिना अन्य सर्व खण्ड अपने-अपने नीचे के समय सम्बन्धी किसी भी खण्डसे समानता नहीं रखते । सो १५ यहाँ द्वितीयादि द्विचरम पर्यन्त समय सम्बन्धी अन्त-अन्त खण्डोंकी ऊध्र्व रचना करनेपर और नीचे प्रथम समयके द्वितीयादि अन्त पर्यन्त खण्डोंकी तिर्यक् रचना करनेपर हलके आकार रचना होती है। ४० ४१ ४२ अपेक्षा हल रचना अंक संदृष्टिकी २० इसलिए इसको लांगल रचना कहते हैं। अब विशुद्धताके अविभागी प्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा वर्णन करते हैं । जिसका दूसरा भाग न हो सके,ऐसे शक्तिके अंशका नाम अविभाग प्रतिच्छेद है। उनकी अपेक्षा गणना करके पूर्वोक्त अधःकरणके खण्डोंमें अल्पबहुत्वका वर्णन करते हैं। अधःप्रवृत्तकरणके परिणामोंमें प्रथम समय सम्बन्धी परिणामोंके खण्डोंमें प्रथम खण्डके परिणाम सामान्यसे असंख्यात लोक मात्र हैं,तथापि पूर्वोक्त विधानके अनुसार स्थापित भाज्य भाग हारका अपवर्तन करने२५ पर संख्यात प्रतरावलीसे भाजित असंख्यात लोक मात्र हैं। ये परिणाम अविभाग प्रतिच्छेदों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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