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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका पर्यंत ५३ प्रथमखंडंगलुं चरमसमयदोळु द्विश्चरमखंडपय्र्यंतं खंडगळु २४ । ५५ । ५६ । तंतंमुपरितनसमयपरिणामंगळोडने सादृश्याभावमप्युदरिदं असदृशंगळु इदंकुशरचनेयक्कु । अहंगे द्वितीयसमयं मोदगोंडु ४३ द्विचरमसमय ५६ पर्यंत मावुकेलवु चरमखंडंगळु प्रथमसमय प्रथमखंड ३९ वज्जितंगळु मावु केलवु खं चे थे वे के को ढे ते के X ㄨㄨㄨ 62 समयात् ४० द्विचरमसमयपर्यन्तं ५३ प्रथमप्रथमखण्डानि चरमसमयप्रथमखण्डात् द्विचरमसमयपर्यन्तखण्डानि च ५४ । ५५ । ५६ । स्वस्वोपरितनसमयपरिणामः सह सादृश्याभावात् असदृशानि । इयमङ्कुशरचनेत्युच्यते । तथा द्वितीयसमयात् ४३ द्विचरमसमय ५६ पर्यन्तं चरमचरमखण्डानि प्रथमसमयप्रथमखण्ड ३९ वर्जितशेषखण्डानि च स्वस्वाधस्तनसमयपरिणामः सह सादृश्याभावाद् रे हे को ने 266 Jain Education International ५४ ५५ ५६ ५४ ५५ ५६ समानता पायी जाती है । इसलिए अनुकृष्टि नाम दिया है । जितनी संख्याको लिये ऊपर के समयों में परिणाम खण्ड होते हैं, उतनी ही संख्याको लिये नीचेके समयों में भी परिणाम खण्ड होते हैं । इस तरह नीचेके समय सम्बन्धी परिणाम खण्डसे ऊपरके समय-सम्बन्धी परिणाम खण्ड में समानता देखकर इसका नाम अधःप्रवृत्तकरण कहा है। For Private & Personal Use Only इयमङ्कुशरचना • विशेष बात यह है कि प्रथम समय सम्बन्धी अनुकृष्टिका प्रथम खण्ड सबसे जघन्य खण्ड है । क्योंकि अन्य सब खण्डोंसे इसकी संख्या कम है । और अन्तिम समय सम्बन्धी अन्तिम अनुकृष्टि खण्ड सबसे उत्कृष्ट है; क्योंकि इसकी संख्या सबसे अधिक है । सो इन दोनोंकी अन्य खण्डोंसे कहीं भी समानता नहीं है। इन दोनोंके सिवाय शेष ऊपर समय सम्बन्धी खण्डोंकी नीचेके समय सम्बन्धी खण्डोंके साथ अथवा नीचेके समय - सम्बन्धी खण्डों की ऊपर समय सम्बन्धी खण्डोंके साथ समानता है । उनमें द्वितीय समयसे लेकर द्विरम समय पर्यन्त समयका पहला पहला खण्ड और अन्तिम समयका प्रथम खण्डसे लेकर द्विचरम पर्यन्त खण्ड अपने-अपने ऊपरके समय सम्बन्धी खण्डोंके समान नहीं हैं अर्थात् उनमें समानता नहीं है । सो द्वितीयादि द्विचरम समय पर्यन्त सम्बन्धी खण्डोंकी ऊर्ध्वरचना करनेपर और ऊपर अन्त समयके प्रथमादि द्विचरम पर्यन्त खण्डोंकी तिर्यक् रचना करनेपर अंकुशके आकार रचना होती है ५ १० १५ २० २५ www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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