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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका विरोधिगाप्तवचनवर्कषु प्रामाण्यानुपपत्तियत्र्त्तार्णदमिदमेव तत्त्वमेदितु निर्णयिसल्कशक्यमप्पुर्दारदं सर्वत्र संशयमे एंबी अभिप्रायं संशय मिथ्यात्व में बुदक्कु । ज्ञानदर्शनावरणतीव्रोदयाक्रांतंगळप्पे केंद्रियजीवंगळ गमनेकांतात्मकं वस्तुर्वेदितु वस्तुसामान्यदोळमुपयोगलक्षणो जीव एंदेंबवस्तु विशेषदोलमज्ञानजनितमप्प श्रद्धानमज्ञानमिथ्यात्व ॥ अनंतर मवरुदाहरणोपलक्षणप्रदर्शनार्थमिदं पेळदपरु । एयंत बुद्धरिसी विवरीओ बम्ह तावसो विणओ । इंदोविय संसइयो मक्कडिओ चेव अण्णाणी ॥ १६ ॥ ४७ बुद्धदर्शी एकांत: ब्राह्मणो विपरीतः तापसो वैनयिकः । इंद्रोऽपि च संशय मिथ्यारुचिः स्वाज्ञानी ॥ क्षणिकैकांत वादिगळप्प बुद्धदर्शीप्रभृतिगळेकांत मिथ्यादृष्टिगळु । याज्ञिक - १० ब्राह्मणादि विपरीत मिध्यादृष्टिगळु । तापसादिगळु वैनयिकमिथ्यारुचिगळु । इंद्रमतानुसारिप्रभृतिगळु संशयमिथ्यादृष्टिगळु । मस्कर्यादिगलु अज्ञानमिथ्याभिनिवेशरप्परु । अनंतरमतत्त्वश्रद्धानलक्षणमप्प मिथ्यात्वमं निरूपिसलिदं पेदपरु । कालान्तरे च व्यभिचारसंभवात् परस्परविरोधिन आप्तवचनस्याऽपि प्रामाण्यानुपपत्तेरिदमेव तत्त्वमिति निर्णयितुमशक्तेः सर्वत्र संशय एव इत्यभिप्रायः संशयमिध्यात्वं । ज्ञानदर्शनावरणती व्रोदयाक्रान्तानामेकेन्द्रियजीवानां १५ अनेकान्तात्मकं वस्त्विति वस्तुसामान्ये, उपयोगलक्षणो जीव इति वस्तुविशेषेपि अज्ञानजनितं श्रद्धानं अज्ञानमिथ्यात्वं भवति ।। १५ ।। अथैषां पञ्चानामुदाहरणान्युद्दिशति - एतानि उपलक्षणत्वेन उक्तत्वात् एवं व्याख्येयानि - बुद्धदर्यादयः एकान्त मिथ्यादृष्टयः । याज्ञिकब्राह्मणादयः विपरीतमिथ्यादृष्टयः । तापसादयः विनयमिथ्यादृष्टयः । इन्द्रो नाम श्वेताम्बर गुरुः, तदादयः संशय मिथ्यादृष्टयः । मस्कर्यादयः अज्ञानमिध्यादृष्टयो भवन्ति ॥ १६ ॥ अथातत्त्वश्रद्धानलक्षणं मिथ्यात्वं निरूपयति ५ Jain Education International देशान्तर और कालान्तर में व्यभिचार सम्भव होनेसे परस्परमें विरोधी आप्तके वचन भी प्रमाण नहीं होते, इसलिए 'यही तत्त्व है' इस प्रकारका निर्णय करना शक्य न होनेसे सर्वत्र संशय ही है, इस प्रकारका अभिप्राय संशय मिथ्यात्व है । ज्ञानावरण और दर्शनावरण के तीव्र उदयसे आक्रान्त एकेन्द्रिय आदि जीवोंका 'वस्तु अनेकान्तात्मक है' इस प्रकार वस्तु सामान्यमें और 'जीवका लक्षण उपयोग है' इस प्रकार वस्तु विशेषमें भी जो अज्ञान मूलक २५ श्रद्धान है, वह अज्ञान मिध्यात्व है । इस प्रकार स्थूल अंशके आश्रय से मिथ्यात्व के पाँच भेद कहे । सूक्ष्म अंशके आश्रय से असंख्यात लोक मात्र भेद हो सकते हैं, किन्तु उनका व्यवहार सम्भव नहीं है ||१५|| For Private & Personal Use Only २० आगे मिथ्यात्व के इन पाँच प्रकारोंके उदाहरण देते हैं—ये उदाहरण उपलक्षणरूप से कहे हैं अर्थात् एकका नाम लेनेसे अन्यका भी ग्रहण होता है । इसलिए इस प्रकार अर्थ ३० करना चाहिए - बुद्धदर्शी अर्थात् बुद्धके अनुयायी आदि मत एकान्त मिध्यादृष्टि हैं । यज्ञके कर्ता ब्राह्मण आदि विपरीत मिथ्यादृष्टि हैं। तापसी आदि विनय मिध्यादृष्टि हैं । इन्द्र नामक श्वेताम्बर गुरु आदि संशय मिथ्यादृष्टि हैं । मस्करी आदि अज्ञान मिध्यादृष्टि हैं । वर्तमान कालकी अपेक्षा इस भरत क्षेत्र में होनेवाले बुद्धदर्शी आदिको यहाँ उदाहरण के रूप में उपस्थित किया है ॥१६॥ ३५ www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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