SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ ) छक्खंडागमे संतकम्म अंतोमुहत्तसंजुत्तेण तस्स अणंतभागे घादिदे जह० हाणी होदि त्ति सिद्धं । जहण्णमवट्ठाणं जहण्णहाणीए दादव्वं । तिण्णं संजलणाणं जह० हाणी कस्स ? खवयस्स चरिमसमयजहण्णाणुभागबंधं संकामेंतस्स जहणिया हाणी। वड्ढी अवट्ठाणं च कस्स? सुहुमेइंदियस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मियम्हि वत्तव्वं । पुरिसवेदस्स तिसंजलणभंगो। लोहसंजलणस्स जह० हाणी कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयसुहमसांपराइयस्स । वड्ढी अवट्ठाणं च कस्स ? सुहमेइंदियस्स जहण्णसंतकम्मादो पक्खेवुत्तरं बंधमाणस्स । अढण्णं णोकसायाणं जह० हाणी कस्स ? अपच्छिमअणुभागखंडयस्स पढमसमए वट्टमाणस्स जह० हाणी। वड्ढी अवट्ठाणं च कस्स ? सुहमेइंदियस्स सगजहण्णाणुभागसंतकम्मादो पक्खेवुत्तरं बंधमाणस्स। णामाणं सादिसंताणं वड्ढी कस्स ? संजोजिदबिदियसमए जं बद्धं तमावलियादिक्कंतं संकामेंतस्स जह० वड्ढी। हाणि-अवट्ठाणाणं अणंताणुबंधिभंगो। अणादियणामपयडीणं वढि-हाणि-अवट्ठाणाणि कस्स? सुहमेइंदियस्स सगजहण्णाणुभागसंत अनुभाग होता है। वह उससे हीन रहकर घातको भी प्राप्त होता है । इसीलिये अन्तर्मुहूर्त संयुक्त उक्त जीवके द्वारा उसके अनन्त बहुभागका घात कर चुकनेपर उनकी जघन्य अनुभागसंक्रमहानि होती है, यह सिद्ध है। जघन्य अवस्थान जघन्य हानिमें देना चाहिये । तीन संज्वलन कषायोंकी जघन्य हानि किसके होती है ? उनको जघन्य हानि जघन्य अनुभागबन्धका संक्रमण करते हुए उसके अन्तिम समयमें वर्तमान क्षपकके होती है। उनकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान किसके होता है ? उनकी जघन्य वृद्धि और अवस्थानका कथन सूक्ष्म एकेन्द्रियके जघन्य अनुभागसत्कर्ममें करना चाहिये । पुरुषवेदकी प्ररूपणा उपर्युक्त तीन संज्वलन कषायोंके समान है। संज्वलनलोभकी जघन्य अनुभागसंक्रमहानि किसके होती है ? वह अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक होने में जिसके एक समय अधिक आवली मात्र काल शेष है उसके होती है। उसकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान किसके होता है ? जघन्य सत्कमकी अपेक्षा प्रक्षेप अधिक बांधनेवाले सूक्ष्म एकेन्द्रियके उसकी जघन्य वृद्धि व अवस्थान होता है। आठ नोकषायोंकी जघन्य हानि किसके होती है। अन्तिम अनुभागकाण्डकके प्रथम समयमें वर्तमान जीवके उनकी जघन्य हानि होती है। उनकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान किसके होता है ? अपने जघन्य अनुभागसत्कर्मसे प्रक्षेप अधिक अनुभागको बांधनेवाले सूक्ष्म एकेन्द्रियके उनकी जघन्य वृद्धि और अवस्थान होता है । सादि सत्त्ववाली नामप्रकृतियोंकी जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि किसके होती है ? संयोजनके द्वितीय समयमें जो अनुभाग बांधा गया है आवली अतिक्रान्त उसका संक्रम करनेवालेके उनकी जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि होती है। उनकी हानि और अवस्थानको प्ररूपणा अनन्तानुबन्धी कषायके समान है। अनादि सत्त्ववाली नामप्रकृतियोंकी जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि, हानि और अवस्थान किसके होता हैं ? अपने जघन्य अनुभागसत्कर्मसे प्रक्षेप अधिक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy