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________________ संकमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो (४०३ णवरि जहणिया हाणी जत्थ जहण्णढिदिसंकमो तत्थ वत्तव्यो । पंचण्णमंतराइयाणं मदिणाणावरणभंगो । णिहाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धीणं जह० अणुभागवड्ढी कस्स ? सुहुमेइंदियस्स हदसमुष्पत्तियकमेण कदजहण्णाणुभागसंतकम्मस्स पक्खेवुत्तरं बंधिय आवलियादीदं संकातस्स । तं चेव वढिदाणुभागं अंतोमुहुत्तेण घादिय संकामेंतस्स जह• हाणी। एगदरत्थावट्ठाणं । सम्मत्त० जहपिणया हाणी कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । जहण्णवड्ढी पत्थि । जहण्णमवढाणं कस्स? चरिमाणुभागखंडयबिदियफालीए वट्टमाणस्स । सम्मामिच्छत्तस्स जहणिया हाणी कस्स ? चरिमसमयअणुभागखंडयस्स पढमसमए वट्टमाणस्स जह० हाणी। तस्सेव से काले जहण्णमट्ठाणं। जहण्णवड्ढी पत्थि । __ अणंताणुबंधि० जहणिया वड्ढी कस्स ? अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोजिय दुसमयावलियसंजुत्तस्स । हाणी अवट्ठाणं च कस्स ? अंतोमुहत्तसंजुत्तस्स । तं जहाअणंताणुबंधिणो विसंजोजिय संजुत्तो जदि वि उक्कस्सियाए वड्ढीए वड्ढदि तो वि जाव अंतोमहत्तं कालं ताव सुहमेइंदियजहण्णाणुभागसंतकम्मादो हेट्टदो चेव अणंताणुबंधीणमणुभागो होदि । सो तत्तो हेढदो अच्छमाणो घादं पि गच्छदि । तदो तेण ही समान है। विशेष इतना है कि जहांपर जघन्य स्थिति संक्रम है वहांपर उसकी जघन्य हानि कहना चाहिये। पांच अन्तराय कर्मोकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्स्यानगृद्धि की जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि किसके होती है ? वह हतसमुत्पत्तिकक्रमसे जघन्य अनुभागसत्कर्मको कर चुकनेवाले सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके प्रक्षेप अधिक बांधकर आवली अतिक्रान्त उसका संक्रम करते समय होती है । उसी वृद्धिंगत अनुभागको अन्तर्मुहूर्तमें घातकर संक्रम करनेवालेके उसकी जघन्य हानि होती है । दोनोंमेंसे किसी भी एकमें जघन्य अवस्थान होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिको जघन्य अनुभागसंक्रमहानि किसके होती है ? वह जिसके चरम समयवर्ती अक्षीणदर्शनमोह होने में एक समय अधिक आवली मात्र काल शेष है उसके होती है। उसकी जघन्य अनुभाग संक्रमवृद्धि नहीं है । उसका जघन्य अवस्थान किसके होता है ? वह अन्तिम अनुभागकाण्डककी द्वितीय फालि में वर्तमान जीवके होता है । सम्यग्मिथ्यात्वको जघन्य हानि किसके होती है? चरम अनुभागकाण्ड कके प्रथम समय में वर्तमान जीवके उसकी जघन्य हानि होती है । उसीके अनन्तर समय में उनका जघन्य अवस्थान होता है । उसकी जघन्य वृद्धि नहीं है। अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी विसंयोजना करके दो समय अधिक आवली संयुक्त जीवके अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि होती है । उनकी जघन्य हानि और अवस्थान किसके होते हैं ? वे उनकी विसंयोजना करके अन्तर्मुहूर्त संयुक्त जीवके होते हैं। यथा- अनन्तानुबन्धीको विसंयोजना करके उससे संयुक्त जीव यद्यपि उत्कृष्ट वृद्धि के द्वारा वृद्धिंगत होता है तो भी उसके अन्तर्मुहूर्त काल तक सूक्ष्म एकेन्द्रियके जघन्य अनुभागसत्कर्मकी अपेक्षा हीन ही अनन्तानुबन्धी कषायोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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