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छक्खंडागमे संतकम्मं
एत्थ अट्ठपदं - सादस्स उक्कस्सेण अणुभागघादं मिच्छाइट्ठी मज्झिमपरिणामो चेव कुणदि - सुविसुद्ध ण हर्णादि, अइसंकिलिट्ठो वि ण हणदि । कुदो ? साभावि - यादो। एवं सव्वेंस पसत्यकम्माणं । अभव * सिद्धियपाओग्गउक्कस्ससादाणुभागस्स अनंते भागे मज्झिमपरिणामेहि मिच्छाइट्ठी हणदि । जेत्तियमेत्तफद्दयाणि अभवसि - द्वियपाओग्गउक्कस्साणुभागादो मज्झिमपरिणामेहि घादेदि सुहुमसांपराइएण णिव्वfresh साणुभागं पि घादेमाणो तत्तियमेत्ताणि चेव फद्दयाणि घादेदि । एदेण कारणेण भवसिद्धिएण वा अभवसिद्धिएण वा णिव्वत्तिदउवकस्साणुभागे अणुभागखंडण मिच्छाइट्टिणा मज्झिमपरिणामेग घादिदे अणुभागसंकमस्स उक्क० हाणी होदि । एवं सव्वेंस पसत्थकम्माणं । एवमुक्कस्ससामित्तं समत्तं ।
मदिआवरणस्स जहणिया अणुभागसंकमवड्ढी कस्स ? जो सुहुमेइंदियो हद - समुत्पत्तियकमेण कदजहण्णाणुभागसंकमो अप्पणो जहण्णसंतकम्मादो पक्खेवुत्तरं बंधिय आवलियादिक्कतं संकामेदि तस्स जहण्णिया वड्ढी । जह० हाणी कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्यस्स । जहण्णमवद्वाणं जहण्णवड्ढीए दादव्वं । एवं चउणाणावरण- चउदसणावरणाणं पि वत्तव्वं । णिद्दा-पयलाणं पि मदिणाणावरण भंगो।
यहां अर्थपद - उत्कर्षसे सातावेदनीयके अनुभागघातको मध्यम परिणामवाला मिथ्यादृष्टि ही करता है, उसका घात न अतिशय विशुद्ध जीव ही करता है और न अतिशय संक्लिष्ट भी । इसका कारण स्वभाव ही है । इस प्रकार सब प्रशस्त कर्मो के सम्बन्धमें कहना चाहिये । अभव्य योग्य सातावेदनीयके उत्कृष्ट अनुभाग के अनन्त बहुभागको मिथ्यादृष्टि जीव मध्यम परिणामों के द्वारा घातता है । अभव्य योग्य उत्कृष्ट अनुभागों में से जितने मात्र स्पर्धकों को वह मध्यम परिणामों के द्वारा घातता है, सूक्ष्मसाम्परायिक द्वारा रचे गये उत्कृष्ट अनुभागका भी घात करनेवाला जीव उतने मात्र ही स्पर्धकोंको घातता है । इस कारण भव्य अथवा अभव्य के द्वारा रचित उत्कृष्ट अनुभागका मध्यम परिणाम युक्त मिथ्यादृष्टि के द्वारा अनुभागकाण्डक स्वरूपसे घात कर चुकनेपर अनुभागसंक्रमकी उत्कृष्ट हानि होती है । इसी प्रकार सब प्रशस्त कर्मों के सम्बन्ध में कथन करना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ ।
मतिज्ञानावरणकी जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि किसके होती है ? हतसमुत्पत्ति क्रमसे जघन्य अनुभागसत्कर्मको कर चुकनेवाला जो सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव अपने जघन्य सत्कर्मकी अपेक्षा प्रक्षेप अधिक बांधकर आवली अतिक्रान्त उसका संक्रम करता है उसके मतिज्ञानावरणकी जघन्य अनुभागसंक्रमवृद्धि होती है । उसकी जघन्य हानि किसके होती है ? वह जिसके चरम समयवर्ती छद्मस्थ होने में एक समय अधिक आवली मात्र काल शेष रहा है उसके होती है । जघन्य अवस्थान जघन्य वृद्धिमें देना चाहिये । इसी प्रकार चार ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण के भी कहना चाहिये । निद्रा और प्रचलाकी भी प्ररूपणा मतिज्ञानावरण के
* ताप्रती ' Jain Education International
कम्माणं अभव इति पाठः ।
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ताप्रती ' घादेदि' इति पाठः ।
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