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________________ संकमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो ( ४०१ संखे० गुणा । उच्चागोदस्स मणुसगइभंगो । अणादियसंतकम्मियाणं णामपयडीणं णीचागोद-पंचंतराइयाणं च णाणावरणभंगो। आहारसरीरस्स अवत्तव्व० थोवा । भुजगार० संखे० गुणा । अप्पदर० संखे० गुणा । अवट्ठिय० असंखे० गुणा । तित्थयरस्त आहारभंगो । एवमणुभागभुजगारसंकमो समत्तो। एत्तो पदणिक्खेवो- णाणावरणस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स? जो तप्पाओग्गेण जहण्णाणुभागसंतकम्मेण उक्कस्ससंकिलेसं गदो* तदो उक्कस्सओ अणुभागो पबद्धो आवलियादिवकंतस्स उक्कस्सिया अणुभागसंकमवड्ढी अवट्ठाणं च । उक्कस्सिया हाणी कस्स ? जो उक्कस्सादो अणुभागसंतकम्मादो उक्कस्समणुभागघादं करेदि तस्स अणुभागखंडए घादिदे सेसाणुभागसंतकम्मं से काले संकामेंतस्स उक्कस्सिया हाणी अणुभागसंकमस्स । एवं सव्वेसिमप्पसत्थाणं कम्माणं । सादस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? समयाहियावलियअकसायस्स खवयस्स । उक्क० हाणी कस्स? जो उवसामयचरिमसमयसुहुमसांपराइएण बद्धसादाणुभागं मिच्छत्तं गंतूण उक्कस्सएण अणुभागखंडएण घादिय सेसं संकामेमाणओ* तस्स उक्कस्सिया हाणी । उक्कस्समवट्ठाणं वड्ढीए । जसकित्ति-उच्चागोदाणं सादभंगो। प्ररूपणा, मनुष्यगतिके समान है । अनादिसत्कमिक नामप्रकृतियों, नीच गोत्र और पांच अन्तरायोंकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है । आहारशरीरके अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार अनुभाग संक्रामक संख्यातगुणे हैं । अल्पतर अनुभाग संक्रामक संख्यातगुणे हैं । अवस्थित अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। तीर्थंकर नामकर्मकी प्ररूपणा आहारशरीरके समान है । इस प्रकार अनुभागभुजाकारसंक्रम समाप्त हुआ। यहां पदनिक्षेपकी प्ररूपणा करते हैं । - ज्ञानावरणकी उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमवृद्धि किसके होती है ? जो तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागसत्कर्म के साथ उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ है और तत्पश्चात् जिसने उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध किया है उसके आवली मात्र कालके वीतनेपर उसकी उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमवृद्धि और अवस्थान भी होता है । उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है? जो उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मसे उत्कृष्ट अनुभागका घात करता है उसके अनुभागकाण्डकका घात कर चुकनेपर अनन्तर कालमें शेष अनुभागसत्कर्मका संक्रम करते समय उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमकी हानि होती है । इस प्रकार सब अप्रशस्त कर्मों के सम्बन्धमें कहना चाहिये । सातावेदनीयकी उत्कृष्ट अन भागसंक्रमवद्धि किसके होती है ? वह एक समय अधिक मात्र कालवर्ती अकषाय क्षपकके होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है? जो चरम समयवर्ती सूक्ष्म सांपरायिक उपशामकके द्वारा बांधे गये सातावेदनीयके अनुभागको मिथ्यात्वको प्राप्त हो उत्कृष्ट अनुभागकाण्डक द्वारा घातकर शेष अनुभाग का संक्रम कर रहा है उसके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसका उत्कृष्ट अवस्थान वृद्धि में होता है । यशकीति और उच्चगोत्रकी प्ररूपणा सातावेदनीयके समान है। * अप्रतौ 'संकिलेसादो' इति पाठः । ४ ताप्रती 'पबद्धो (नस्स-) आवलियादिक्कस्स' इति पाठः। 0 अप्रती 'घादे', ताप्रतौ 'घादेदि' इतिपाठः। अप्रतौ ‘से संकामेमाणओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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