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________________ ४०० ) छक्खंडागमे संतकम्म एत्तो अप्पाबहुअं- णाणावरणस्स अप्पदर० थोवा । भुजगार. असंखे० गुणा । अवट्ठिय० असंखे० गुणा । एवं णवदंसणावरणीय-सादासाद-मिच्छत्त-सोलसकसायणवणोकसायाणं । णवरि सोलसक० - णवणोकसायाणं अवत्तव्व० थोवा । अप्पदर० अणंतगुणा । भुजगार० असंखे० गुणा । अवट्ठिय० संखे० गुणा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं अप्पदर० थोवा । अवत्तव्व० असंखे० गुणा । अवट्ठिय० असंखे० गुणा । णिरयाउअस्स अप्पदर० थोवा । अवत्तव्व० संखे० गुणा । भुजगार० असंखे० गुणा । अवट्ठिय० असंखे० गुणा। देवाउअस्स णिरयाउअभंगो । मणुसाउअस्स अप्पदर० थोवा । अवत्तव्व विसेसा० । भुजगार० असंखे० गुणा । अवट्ठिय० संखे० गुणा। तिरिक्खाउअस्स अवत्तव्व० थोवा । अप्पदर० अणंतगुणा । भुजगार० असंखे० गुणा । अवट्ठिय० संखे० गुणा । णिरयगईए अवत्तव्व० थोवा । भुजगार० असंखे० गुणा । अप्पदर० असंखे० गुणा । अवट्ठिय०असंखे०गुणा । देवगइ-वेउब्वियसरीराणं णिरयगइभंगो। मणुसगइ० अवत्तव्व० थोवा । अप्पदर० अणंतगुणा। भुजगार० असंखे० गुणा। अवट्ठिद० अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की जाती है- ज्ञानावरणके अल्पतर अनुभाग संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अवस्थित अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके भी अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिए। विशेष इतना है कि सोलह कषाय और नौ नोकषायके अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक स्तोक है। अल्पतर अनुभाग संक्रामक अनन्तगुणे है। भुजाकार अनुभाग सक्रामक असंख्यातगुणे है। अवस्थित अणुभाग संक्रामक संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतर अनुभाग संक्रामक स्तोक हैं । अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अवस्थित अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। नारकायुके अल्पतर अनुभाग संक्रामक स्तोक है। अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक संख्यातगुणे हैं । भुजाकार अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे है । अवस्थित अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । देवायु के इस अल्पबहुत्वको प्ररूपणा नरका के समान है। मनुष्यायुके अल्पतर अनुभाग संक्रामक स्तोक है। अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक विशेष अधिक हैं । भुजाकार अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अवस्थित अनुभाग संक्रामक संख्यातगुणे हैं। तिर्यगायुके अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक स्तोक हैं । अल्पतर अनुभाग संक्रामक अनन्तगुणे हैं । भुजाकार अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अवस्थित अनुभाग संक्रामक संख्यातगुणे है । नरकगतिके अवक्तव्य अनुभाग संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। अल्पतर अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अवस्थित अनुभाग संक्रामक असंख्यातगणे हैं। देवगति और वैक्रियिकशरीरकी प्ररूपणा नरकगतिके समान है। मनुष्यगतिके अकक्तव्य अनुभाग संक्रामक स्तोक हैं । अल्पतर अनुभाग संक्रामक अनन्तगुणे हैं। भुजाकार अनुभाग संक्रामक असंख्यातगुणे है । अवस्थित अनुभाग संक्रामक संख्यातगुणे हैं । उच्चगोत्रकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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