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संकमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो
( ३८९
भंगा वत्तव्वा । साद जसकित्ति उच्चागोदाणं उक्कस्साणुभागस्स णियमा अत्थि संकामया च असंकामया च । एदासिमणुक्कस्साणुभागस्स वि संकामया च असं कामया चणियमा अत्थि । सेसाणं कम्माणं छ भंगा । अपुव्वकरणे परभवियणामाणं बंधवोच्छेदम्मि जेसि कम्माणं उक्कस्सबंधो भणिदो तेसिमुक्कस्सो वा अणुक्कस्सो वा बंध तत्थ होदि, असंखेज्जलोगमेत्त अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणाणं तत्थ संभवादो । देसि छ भंगा । एवमुक्कस्सपदभंगविचओ समत्तो ।
जहण्णयस्स वि एवं चेव अट्ठपदं । एदेण अट्ठपदेण पंचणाणावरणीय छदंसणावरणीय -- सम्मत्त - सम्मामिच्छत्त-अनंताणुबंधीणं चटुक्क चदुसंजलण-णवणोकसायआउत्तिउव्वेल्लमा णणामपग्रडि -- उच्चागोद--पंचतराइयाणं जहण्णा णुभागसं कामयाणं छ भंगा। श्रीणगिद्धितिय सादासाद-मिच्छत्त-अट्ठकसाय- तिरिक्खाउअ- अणुब्वेल्लमाणणामपडणं णीचागोदस्स च जहण्णाणुभागस्स णियमा संकामया च असंकामया च । एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो ।
नाणाजीवेहि कालो । तं जहा- साद जसकित्ति उच्चागोदाणं उक्कस्साणुभागसंकामया केवचिरं० ? सव्वद्धा । सेसाणं कम्माणं उक्कस्साणुभागसंकामया जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० अप्पसत्थाणं कम्माणं पलिदो० असंखे ० भागां । आउआणमुक्कस्साणुभाग
तथा कदाचित् संक्रामक भी बहुत और असंक्रामक भी बहुत होते हैं । ) कहना चाहिये । सातावेदनीय, यशकीर्ति और उच्चगोत्र के उत्कृष्ट अनुभाग के नियमसे बहुत संक्रामक और बहुत असंक्रामक होते हैं । इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के भी बहुत संक्रामक और बहुत असंक्रामक होते हैं । शष कर्मोंके छह भंग हैं । अपूर्वकरण गुणस्थान में परभविक नामकर्मोकी बन्धव्यु - च्छित्ति हो जानेपर जिन कर्मोंका उत्कृष्ट बन्ध कहा गया है उनका वहां उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट बन्ध होता है । क्योंकि, वहां असंख्यात लोक मात्र अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंकी सम्भावना है । इस कारण इनके छह भंग होते हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट-पद-भंगविचय समाप्त हुआ ।
जघन्य अनुभाग संक्रमके भी विषय में यही अर्थपद है । इस अर्थपदके अनुसार पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सम्यक्त्व, सम्यग्ध्यिात्व अनन्तानुबन्धिचतुष्क, चार संज्वलन, नौ नोकषाय, तीन आयु, उद्वेल्यमान नामप्रकृतियों, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायके जघन्य अनुभाग संक्रामकोंके छह भंग होते हैं । स्त्यानगृद्धि आदि तीन सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, आठ कषाय, तिर्यगायु, अनुद्वेत्यमान नामप्रकृतियों और नीचगोत्रके जघन्य अनुभाग के नियमसे संक्रामक बहुत और असंक्रामक भी बहुत होते हैं । इस प्रकार नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा इस प्रकार है- नातावेदनीय, यशकीर्ति और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभाग संक्रामकोंका काल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा उनका सर्वकाल है । शेष कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अप्रशस्त कर्मो का पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है । आयु कर्मोके उत्कृष्ट अनुभाग Xxx अ-काप्रत्योः '
सम्वद्धं ' इति पाठः ।
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