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________________ ३९० ) छक्खंडागमे संतकम्म संकामयाणं कालो जह० अंतोमु०, उक्क० अंगुलस्स असंखे० भागो। जासि परभवियणामाणं बंधज्झवसाणस्स चरिमसमए खवओ उक्कस्सागुभागं णिवत्तेदि तासि णामपयडीणं उक्कस्साणुभागसंकामयकालो जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० पुव्वकोडिपुधत्तं। पसत्थाणं णामपयडीणं अक्खवयपाओग्गाणं उक्कस्साणुभागसंकमकालो जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० अखंखे०भागो। एवमुक्कस्सकालो समत्तो। एत्तो णाणाजीवेहि जहण्णाणुभागसंकामयकालो। तं जहा-पंचणाणावरण-छदंसणावरण-सम्मत्त-पुरिसवेद-चदुसंजलण-पंचंतराइयाणं जहण्णाणुभागसंकामयाणं कालो जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया। अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसंकामया जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। सम्मामिच्छत्त-अट्ठणोकसायाणं जहण्णाणुभागसंकामया जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । तिण्णमाउआणं जहण्णाणुभागसंकामयाणं जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। तिरिक्खाअउस्स जहण्णाजहण्णस्स सव्वद्धा। णिरय-देव-मणसगइणामाणं तप्पाओग्गआणुपुव्वीणामाणं वेउव्वियसरीरवेउब्वियसरीरंगोवंग-बंधण-संघादणामाणं जहण्णाणुभागसंकामयाणं० जह० एगसमओ, उक्क०आवलि०असंखे०भागो। एवमुच्चागोदस्सा आहारसरीर-आहार सरीरअंगोवंग संक्रामकोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र है। जिन परभविक नामकर्मोके बन्धाध्यवसानके अन्तिम समयमें क्षपक जीव उत्कृष्ट अनभागकी रचना करता है उन नामप्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । अक्षपक योग्य प्रशस्त नामप्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है । इस प्रकार उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा समाप्त हुई। यहां नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अनुभाग संक्रामकोंके कालकी प्ररूपणा की जाती है। यथा- पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सम्यक्त्व पुरुषवेद, चार संज्वलन और पांच अन्तरायके जघन्य अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्य एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय मात्र है। अनन्तानुबंधी कषायोंके जघन्य अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है। सम्यग्मिथ्यात्व और आठ नोकषायोंके जघन्य अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त मात्र है । तीन आयु कर्मोके जघन्य अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है । तिर्यगायुके जघन्य व अजघन्य अनुभाग संक्रामकोंका काल सर्वकाल है । नरकगति, देवगति और मनुष्यगति नामकर्मों, तत्प्रायोग्य आनुपूर्वी नामकर्मों, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, वैक्रियिकबन्धन, और वैक्रियिकसंघात नामकर्मोके जघन्य अनुभाग संक्रामकोंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है। इसीप्रकार उच्चगोत्रके सम्बन्ध में कहना चाहिये । आहारशरीर, आहारशरीरांगोपांग, 8 अप्रतौ 'आहारसरीरस्साहार', काप्रती 'आहारसरीरस्स आहार' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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