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छक्खंडागमे संतकम्मं
णिद्दाणिद्दा -- पयलापयला थीणगिद्धि-सादासाद-मिच्छत्त- अट्ठकसाय-- तिरिखखाउआणं अणुब्वेल्लमाणपसत्थापसत्थणामपयडीणं णीचागोदस्स च जहण्णाणुभागसंकामयंतरं जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसं कामयं तरं जह० अंतोमुहुतं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियहं । णिरय देव मणुस्साउआणं जहण्णाणु० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । उव्वेल्लणपाओग्गाणं णामपयडीणं उच्चागोदस्स च जहण्णाणुभागसंकामयंतरं जह० पलिदो० असंखे ० भागो, उक्क० मोत्तूण संजदपाओग्गाओ अवसेसाणं असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, संजदपाओग्गाणं उवड्ढपोग्गलपरियहं । तित्थयरणामाए जहण्णाणुभागसंकामयंतरं णत्थि । एवं अंतरं समत्तं ।
जीवेहिभंगविचओ दुविहो उक्कस्सपदभंगविचओ जहण्णपदभंगविचओ चेदि । तत्थ अट्ठपदं - जे उक्कस्सअणुभागस्स संकामया ते अणुक्कस्स० असंकामया । जे अणुक्कस्तअणुभागस्स # संकामया ते उक्कस्सस्स संकामया । एदेण अट्ठपदेण सव्वकम्माणं पि उक्कस्साणुभागस्स सिया सव्वे जीवा असंकामया, सिया असंकामया च संकामओ च, सिया असंकामया च संकामया च । अणुक्कस्सस्स वि वित्ररीएण तिण्णि
जघन्य अनुभाग संक्रामकका अन्तरकाल सम्भव नहीं है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यागृद्धि, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, आठ कषाय और तिर्यंच आयु तथा अनुद्वल्यमान प्रशस्त व अप्रशस्त नामप्रकृतियों एवं नीचगोत्रके जघन्य अनुभागके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात लोक मात्र है । अनन्तानुबन्धी कषायोके जघन्य अनुभाग, संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पद्गलपरिवर्तन मात्र है । नारकायु, देवायु और मनुष्यायुके जघन्य अनुभाग संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र है । उद्वेलन योग्य नामप्रकृतियों और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभाग संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे पल्योपमके असंख्य तवें भाग है | उत्कर्ष से संयत योग्य प्रकृतियों को छोडकर शेष प्रकृतियोंका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन तथा संयत योग्य प्रकृतियोंका उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन मात्र है । तीर्थंकर नामकर्मके जघन्य अनुभाग संक्रामक्का अन्तरकाल नहीं है | इस प्रकार अन्तरकालकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय दो प्रकार है- उत्कृष्ट-पद-भंगविचय और जघन्य पदभंगविचय । उनमें अर्थपद कहते हैं- जो उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामक हैं वे अनुत्कृष्ट अनुभाग के असंक्रामक होते हैं । जो अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रामक हैं वे उत्कृष्ट अनुभाग के असंक्रामक होते हैं । इस अर्थपदके अनुसार सभी कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभाग के कदाचित् सब जीव असंक्रामक होते हैं, कदाचित् असंक्रामक बहुत और संक्रामक एक होता है, तथा कदाचित् असंक्रामक भी बहुत व संक्रामक भी बहुत होते हैं । अनुत्कृष्ट अनुभाग के सम्बन्ध में भी विपरीत क्रम तीन भंग ( कदाचित् सब जीव संक्रामक, कदाचित् संक्रामक बहुत और असंक्रामक एक,
अप्रतौ
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वे ' इति पाठ: ।
ॐ ताप्रतौ '
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उ (अणु) काभागस्स' इति पाठः ।
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