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________________ संकमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिसंकमो ( ३७३ असंखे० भागपडिभागो। भुजगारसंकामया सव्वजीवाणमंतोमुहुत्तपडिभागो। अप्पदरसंकामया सव्वजीवाणं असंखेज्जा भागा । एदेण अप्पाबहुअंतिरिक्खाउअस्स साहेयव्वं । णिरयगईए अवत्तव्वसंकामया थोवा । भुजगार० असंखे० गुणा । अवट्टिय० अप्पदर० असंखे० गुणा उज्वेलणकालसंचिदे पडुच्च । एवं देवगइणामाए। मणुसगइणामाए अवत्तव्व० थोवा । भुजागार० अणंतगुणा । अवट्ठिय० असंखे० गुणा । अप्पदर० असंखे० गुणा । तिरिक्खगइणामाए भुजगार० थोवा । अवट्ठिय० असंखे० गुणा । अप्पदर० संखे० गुणा । चदुण्णमाणुपुवीणं सग-सगगइभंगो । ओरालिय-तेजाकम्मइयाणं भुजगार० थोवा । अवट्टिय० असंखे गुणा । अप्पदर० संखे० गुणा । एवं अणादियसंतकम्मणामाणं । णीचागोद-पंचंतराइयाणं णाणावरणभंगो। उच्चागोदस्स मणुसगइभंगो । एवं भुजगारढिदिसंकमो समत्तो। पदणिक्खेवस्स टिदिउदीरणपदणिक्खेवभंगो। वढिसंकमो--पंचणाणावरणीयाणं असंखेज्जगुणहाणीए संकमाया थोवा । संखेज्जगुणहाणीए असंखे० गुणा । संखेज्जभागहाणीए संखे० गुणा । संखेज्जगुणवड्ढीए असंखे० गुणा। संखे० भागवड्ढीए संखे० गुणा । असंखे० भागवड्ढीए अणंतगुणा । अवट्ठिद० असंखे० गुणा । असंखे० भाग संक्रामक सब जीवोंके अन्तर्मुहूर्त प्रतिभाग रूप हैं । अल्पतर संक्रामक सब जीवोंके असंख्यात बहुभाग मात्र हैं। इससे तिर्यगायुके अल्पबहुत्वको सिद्ध करना चाहिये । ___ नरकगतिके अवक्तव्य संक्रामक स्तोक हैं । भुजाकार संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अवस्थित व अल्पतर संक्रामक उद्वेलनकालसंचितोंकी अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार देवगति नामकर्मके सम्बन्धमें अल्पबहुत्व कहना चाहिये । मनुष्यगति नामकर्मके अवक्तव्य कामक स्तोक हैं । भुजाकार संक्रामक अनन्तगुणे हैं । अवस्थित संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अल्पतर संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । तिर्यंचगति नामकर्मके भुजाकार संक्रामक स्तोक है । अवस्थित संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अल्पतर संक्रामक संख्यातगुणे हैं। चार आनुपूर्वी नामकर्मोंका अल्पबहुत्व अपनी अपनी गतिके समान है । औदारिक, तैजस और कार्मण शरीरके भुजाकार संक्रामक स्तोक हैं। अवस्थित संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । अल्पतर संक्रामक संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार अनादिसत्कर्मिक नामप्रकृतियोंका अल्पबहुत्व है । नीचगोत्र और पांच अन्तराय प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व ज्ञानावरणके समान है । उच्चगोत्रका अल्पबहुत्व मनुष्यगतिके समान है। इस प्रकार भुजाकार स्थितिसंक्रम समाप्त हुआ। ___ यहां पदनिक्षेपकी प्ररूपणा स्थिति उदीरणा सम्बन्धी पदनिक्षेपके समान है । वृद्धिसंक्रमकी प्ररूपणा की जाती है - पांच ज्ञानावरण सम्बन्धी असंख्यात गुणहानिके संक्रामक स्तोक हैं । संख्यातगुणहानिके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं । संख्यातभागहानिके संक्रामक संख्यातगुणे हैं। संख्यातगुणवृद्धिके संक्रामक असंख्यातगुणं हैं । संख्यातभागवृद्धिके संक्रामक संख्यातगुणे हे । असंख्यातभागवृद्धिके संक्रामक अनन्तगुणे हैं। अवस्थित संक्रामक असंख्यातगुण हैं । _Jain Education in ताप्रती ' असंखे० गुणबड्ढीए' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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