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________________ ३४० ) छक्खंडागमे संतकम्म ववहारुवलंभादो। कालस्सपुव्वस्स पादुब्भावो कालसंकमो णाम। ण च एसो असिद्धो, संकेतो हेमंत्तो ति* ववहारुवलंभादो। संपहि उप्पण्णस्स कधं संकमो ? ण, पोग्गलाणं उप्पाद-वय-धुवभावाणमवयारेण पत्तकालववएसाणं एयंतेण उष्पादाभावादो। अधवा, एगखेत्तम्हि द्विददव्वस्स खेत्तरगमणं खेत्तसंकमो। एगकालम्मि द्विददव्वस्स कालंतरगमणं कालसंकमो। कोधादिएगभावम्हि द्विददव्वस्स भावंतरगमणं भावसंकमो। तत्थ कम्मसंकमे पयदं। सो चउन्विहो पयडिसंकमो टिदिसंकमो अणुभागसंकमो पदेससंकमो चेदि। तत्थ पयडिसंकमे अट्ठपदं- जा पयडि अण्णपर्याड णिज्जदि एसो पयडिसंकमो। एदेण अट्टपदेण संकमे भण्णमाणे तत्थ मूलपयडिसंकमो णत्थि। कुदो? साभावियादो। उत्तरपयडिसंकमे * सामित्तं-बंधे सकमो, अबंधे णत्थि । कुदो? साभावियादो। पंचण्णं णाणावरणीयाणं संकामओ को होदि ? अण्णदरो सकसाओ? णवणं दसणावरणीयाणं पंचण्णमंतराइयाणं च णाणावरणभंगो। सादस्स संकामओ को होदि ? जो असादस्स बंधओ। असादस्स संकामओ को होदि ? जो सादस्स बंधओ अपूर्व कालके प्रादुर्भावका नाम कालसंक्रम है। यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, हेमन्त ऋतु संक्रान्त हई, ऐसा व्यवहार पाया जाता है। शंका-- उत्पन्नका संक्रम कैसे हो सकता है ? समाधान--- नहीं, क्योंकि, उपचारसे काल संज्ञाको प्राप्त हुए पुद्गलोंके उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यके एकान्ततः उत्पादका अभाव है। अथवा एक क्षेत्रमें स्थित द्रव्यके क्षेत्रान्तर गमनको क्षेत्रसंक्रम, एक काल में स्थित द्रव्य के कालान्तर गमनको कालसंक्रम, और क्रोधादिक एक किसी भावमें स्थित द्रव्यके भावान्तर गमनको भावसंक्रम समझना चाहिये। उनमें यहां कर्मसंक्रम प्रकृत है। वह चार प्रकारका है- प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम, अनुभागसंक्रम और प्रदेशसंक्रम । इनमेंसे प्रकृतिसंक्रमके विषयमें अर्थपदका कथन करते हैं-- नो एक प्रकृति अन्य प्रकृतिस्वरूपताको प्राप्त करायी जाती है, यह प्रकृतिसंक्रम कहलाता है। इस अर्थपदके अनुसार संक्रमका कथन करनेपर मलप्रकतिसंक्रम सम्भव नहीं है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। उत्तरप्रकृतिसंक्रममें स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है-- बन्धके होनेपर संक्रम सम्भव है, बन्धके अभाव में वह सम्भव नहीं है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। पांच ज्ञानावरणीय प्रकृतियोंका संक्रमक कौन होता है ? उनका संक्रामक अन्यतर सकषाय जीव होता है। नौ दर्शनावरणीय और पांच अन्तरायके संक्रमणकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है। सातावेदनीयका संक्रामक कौन होता है ? जो असाताका बन्धक है वह साताका संक्रामक होता है। असाताका संक्रामक कौन होता है ? जो सकषाय जीव साताका बंधक होता * काप्रतौ 'णाम एसो असिद्धो संकंतो होतो त्ति' इति पाठः। * अ-काग्त्योः 'संकपो', ताप्रती 'संकमो (मे)' इति पाठः। 6 अप्रतौ ' संकमओ', का-ताप्रत्योः 'संकमो' इति पाठः। * मप्रतौ ‘संकमओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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