________________
५६८)
छक्खंडागमे संतकम्म मायाए० विसे० । लोहे० विसे० । पयलापयला० असंखे० गुगं । णिहाणिद्दा० विसे०। थीणगिद्धि० विसे० । अपच्चक्खाणमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए. विसे० । लोहे० विसे० । पच्चक्खाणमाणे० विसे० । कोहे. विसे० । मायाए विसे० । लोहे० विसे । केवलणाण. विसे० । पयला. विसे० । णिद्दा० विसे० । केवलदसण. विसे० । णिरयगइ० अणंतगुणं । देवगइ० असंखे० गुणं । वेउध्विय० संखे० गुणं । आहार० असंखे० गुणं । तिरिक्खगइ० असंखे० गुणं । णवूस० असंखे० गुणं उच्चागोद० संखे० गुणं । इथि० असंखे० गुणं । मणुसगइ० असंखे० गुणं । ओरालि० असंखे० गुणं । कोहसंजलण० असंखे० गुणं । माण० विसे० । पुरिस० विसे०। माया० विसे । उच्चागोद० असंखे० गुणं । जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० संखे० गुणं । कम्म० विसे० । अजसकित्ति संखे० गुणं । हस्स० संखे० गुणं । रदि० विसे० । सादे० असंखे० गुणं। सोगे० संखे० गुणं । अरदि० विसे० । दुगुंछा० विसे । भय० विसे० । लोहसंजलण. विसे० । दाणंतराइय० विसे० । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयं ति । मणपज्ज० विसे० । ओहिणाण०
अनन्तानुबन्धी क्रोधमें विशेष अधिक है। अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी लोभमें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगुणा है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोधमें विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण क्रोधमें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । नरकगतिमें अनन्तगुणा है । देवगतिमें असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरमें असंख्यातगुणा है । आहारकशरीरमै असंख्यातगुणा है। तिर्यग्गतिमें असंख्यातगुणा है। नपुंसकवेदमें असंख्यातगुणा है । उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है । स्त्रीवेदमें असंख्यातगुणा है । मनुष्यगतिमें असंख्यातगुणा है । औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है। संज्वलन क्रोधमें असंख्यातगुणा है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है । उच्चगोत्रमें असख्यातगुणा है। यशकीतिमें असंख्यातगुणा है। तेजसशरीर में संख्यातगुणा है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीर्तिमें संख्यातगुणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें असंख्यातगुणा है । शोकमें संख्यातगुणा है । अरतिमें विशेष अधिक है। जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयमें विशेष अधिक है । संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है। दानान्तरायमें विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेषाधिकक्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें
3 ताप्रतावत: प्राक् 'पयलास्यला० असंखे० गुणा 'लोहे विसे.' इत्येतावातयं पाठः पुनर्मुदितोऽस्ति कष्ठकस्थः ।
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org