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अप्पाबहुअणुयोगद्दार संकमप्पाबहुअं
( ५६७ विसे० । केवलणाणावरण. विसे० । पयला. विसे० । केवलदसण० विसे० । णिरयगइ० असंखे० गुणं । देवगइ० असंखे०गुणं । वेउव्विय० संखे०गुणं । आहार० असंखे० गुणं । मणुसगइ० संखे गुणं । उच्चागोद० संखे गुणं । ओरालिय* असंखे० गुणं । तिरिक्खगई० संखेगणं । इत्थि० संखेगणं । णवंस०संखे०गणं । णीचागोद० संखे० गुणं । जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० संखे० गुणं । कम्मइय० विसे० । अजसकित्ति० संखे० गुणं । पुरिस० संखेगणं । हस्स० संखे० गुणं । रदि० विसे० । सादे० संखे गुणं । सोगे० संखे० गुणं । अरदि० विसे० । दुगुंछा० विसे० । भय० विसे० । माणसंजलण विसे० । कोहे० विसे । मायाए० विसे० । लोहे० विसे० । दाणंतराइए० विसे० । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयं ति। मणपज्जव० विसे० । ओहिणाण. विसे० । सुद० विसे० । मदि० विसे । ओहिदंसण० विसे । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे । असादे० संखे० गुणं । एवं तिरिक्खगइदंडओ समत्तो। मणुसगदीए जं पदेसग्गं संकामिज्जदि सम्मत्ते तं थोवं । सम्मामिच्छत्ते० असंखे० गुणं। मिच्छत्ते० असंख० गुणं । अणंताणुबंधिमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। प्रचलामें विशेष अधिक है । केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। नरकगतिमें संख्यातगुणा है। देवगतिमें असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। आहारशरीरमें संख्यातगुणा है। मनुष्यगतिमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है। औदारिकशरीर में असंख्यातगुणा है । तिर्यग्गतिमें संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें संख्यातगुणा है। नपुंसकवेदमें संख्यातगुणा है । नीचगोत्रमें संख्यातगुणा है। यशकीर्तिमें असंख्यात गुणा है। तैजसशरीरमें संख्यातगुणा है । कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीर्तिमें संख्यातगुणा है। पुरुषवेदमें संख्यायगुणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । शोकमें संख्यातगुणा है। अरतिमें विशेष अधिक है । जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयम विशेष अधिक है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है। दानान्तरायमें विशेष अधिक है । इस प्रकार विशेषाधिकक्रमसे वीर्यान्त राय तक ले जाना चाहिये। मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। इस प्रकार तिर्यग्गतिदण्डक समाप्त हुआ।
मनुष्यगतिमें जो प्रदेशाग्र सम्यक्त्वमें संक्रान्त होता है वह स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है ।।
*ताप्रतौ 'अगंतगुगा' इति पाठः। * ताप्रती 'उच्चागोद० संखे० । पुरिस० सखे० । ओरालि.' इति पाठः Jain Education International For Private & Personal Use Only
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