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________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दार संकमप्पाबहुअं ( ५६९ विसे० । सुद० विसे । मदि० विसे । ओहिदसण. विसे० । अचक्खु० विसे । चक्खु० विसे । असाद, संखेज्जगुणं । एवं मणुसगइदंडओ समत्तो। _ देवगदीए जं पदेसग्गं संकामिज्जदि सम्मत्ते तं थोवं । सम्मामिच्छत्ते० असंखे० गुणं । मिच्छत्ते० असंखे० गुणं । अणंताणुबंधिमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे. विसे० । पयलापयला० असंखे० गुणं । णिद्दाणिद्दा० विसे० । थीणगिद्धि विसे० । अपच्चक्खाणमाणे असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे. विसे० । पच्चक्खाणमाणे० विसे० । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे० विसे । केवलणाण विसे० । पयला० विसे० । णिहा०विसे०। केवलदसण० विसे । आहार० अणंतगुणं । णिरयगइ० असंखे० गुगं । तिरिक्खगइ० असंखे० गुणं । णवंस०संखे० गुणं । उच्चागोद० संखे० गुणं । इत्थि० असंखे० गुणं । देवगइ० असंखे० गुणं । वेउब्विय० संखे० गुणं । मणुसगइ० असंखे० गुणं । ओरालिय० असंखे० गुणं । उच्चागोद० असंखे० गुणं । जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० संखे० गुणं । कम्मइय० विसे० । अजसकित्ति० संखे० गुणं । पुरिस० संखे० गुणं । हस्स° विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है । अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है। असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। इस प्रकार मनुष्यगतिदण्डक समाप्त हुआ। देवगतिमें जो प्रदेशाग्र सम्यक्त्वमें संक्रान्त होता है वह स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी क्रोध में विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष अधिक है। अनन्तानुबन्धी लोभमें विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है । निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगणा है। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधमें विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण लोभमे विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमे विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण क्रोवमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है । प्रचल में विशेष अधिक है । निद्रामें विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। आहारकशरीरमें अनन्तगुणा है। नरकगतिमें असंख्यातगुणा है। तिर्यग्गतिमें असंख्यातगुणा है। नपुंसकवेदमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें संख्यातगुणा है। देवगतिमें असंख्यातगुणा है। वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। मनुष्यगतिमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें असंख्यातगुणा है। यशकीर्ति में असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरमें संख्यातगुणा है । कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीतिमें संख्यातगुणा है। पुरुषवेदमें संख्यातगुणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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