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________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे पदेसोदओ ( ५५३ णाणावरण-दंसणावरण-अंतराइएसु विसेसाहियं । मोहणीए विसे० । वेदणीए विसे०१। एवं सव्वासु गदीसु । णवरि मणुसगदीए मूलोघभंगो । जहण्णए पयदं- आउअम्मि जं तं थोवं । णामा-गोदेसु देव-णेरइयाणं असंखेज्जगुणं । णाणावरण-दंसणावरण-अंतराइएसु विसेसाहियं । मोहणीए विसे० । एवं सव्वासु गदीषु । एवं णाणावरण-दसणावरण-पंचंतराइयं ति । (?) मणपज्जव० विसेसाहियं । सुद० विसे० । मदि० विसे । अचक्खु० विसे । चक्खु० विसे० । उच्चागोदे विसे । सादासादे विसे० । एवं देवगइदंडओ समत्तो । __ मणुसगदीए जं पदेसग्गं वेदिज्जदि मिच्छत्ते तं थोवं । सम्मामिच्छत्ते० असंखे० गुणं । समस्ते असंखे० गुणं । अण्णदरअणंताणुबंधिकसाए असंखे० गुणं । केवलणाणारणे* असंखे० गुणं । पयला० विसे० । णिद्दा० विसे । पयलापयला० विसे० । णिद्दाणिद्दा० विसे० । थोणगिद्धिए० विसे० । केवलदंसणाव० विसे०। अण्णदरअपच्चक्खाणकसाए विसे० । पच्चक्खाण. विमे० । ओहिणाणाव० अणंतगुणं+ । ओहिदंस० विसे० । मणुसाउअम्मि असंखे० गुणं । ओरालिय० असंखे० गुणं । तेज० विसे० ' असंख्यातगुणा है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायमें विशेष अधिक है। मोहनीयमें विशेष अधिक है। वेदनीयमें विशेष अधिक है। इस प्रकार सब गतियों में जानना चाहिये । विशेष इतना है कि उसकी प्ररूपणा मनुष्यगतिमें मूल ओघके समान है। जघन्य मूलप्रकृतिदण्डक अधिकारप्राप्त है- जो प्रदेशाग्र (वेदा जाता है) वह आयुमें स्तोक है। उससे नाम और गोत्र कर्मोंमें देवों व नारकियोंके असंख्यातगुणा है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायमें विशेष अधिक है। मोहनीयमें विशेष अधिक है। इसी प्रकार सब गतियों में जानना चाहिये। इस प्रकार ज्ञानावरण, दर्शनावरण और पांच अन्तराय तक (?) मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। उच्चगोत्रमें विशेष अधिक है। साता और असाता वेदनीय में विशेष अधिक है। इस प्रकार देवगतिदण्डक समाप्त हुआ। मनुष्यगतिमें जो प्रदेशाग्र वेदा जाता है वह मिथ्यात्वमें स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वम असंख्यातगुणा है। सम्यक्त्वमें असंख्यातगुणा है। अन्यतर अनन्तानुबन्धी कषायमें असख्यातगुणा है। केवलज्ञानावरणमें असंख्यातगणा है। प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक हैं। प्रचलाप्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगद्धि में विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अन्यतर अप्रत्यार कषायमें विशेष अधिक है। अन्यतर प्रत्याख्यानावरण कषायमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें अनन्तगुणा है । अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। मनुष्यायुमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरमें विशेष अधिक है । 'केवलदसण.' ताप्रती 'मोहणीय वेयणीए. विसेसाहियं' इति पाठः। का-ताप्रत्योः इति पाठः। काप्रती ' असंखे० गुणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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