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________________ ५५४) छक्खंडागमे संतकम्म कम्मइय, विसे० । वेउम्विय. विसे० । मणुसगई० संखे० गुणं । जसकित्ति-अजस. कित्तीसु० दुगुंछा संखे० गुणं। भय० विसे । हस्स० विसे० । सोगे० विसे० । रदिअरदि० विसे । अण्णदरवेद० विसे० । दाणंतराइए विसे । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं (जाव) वीरियंतराइयं ति । मणपज्जव. विसे० । सुदणा. विसे० । मदि० विसे० । अचक्खु० विसे० । अण्णदरसंजलणकसाए विसे० । (उच्च) णीचागोदेसु० विसे० । सादासादे० विमे० । आहार० असंखे० । एवं मणुगइदंडओ समत्तो। एइंदिएस जं* पदेसग्गं वेदिज्जदि मिच्छत्ते तं थोवं । अण्णदरअणंताणुबंधिकसाए असंखे० गुणं। केवलणाणाव असंखेज्जगुणं । पयला विसेसाहियं । णिद्दा०विसेसाहियं। पयलापयला० विसे० । णिद्दाणिद्दा० विसे० । थीणगिद्धि० विसे० । केवलदसण० विसे०। अण्णदरअपच्चक्खाणकसाए विसे०। अण्ण०पच्चक्खा०विसे०। तिरिक्खाउअम्मि अणंतगुणं । ओरालिय०संखेज्जगुणं। तेज.विसेसाहियं । कम्मइय०विसे० । वेउव्विय० विसे०। तिरिक्खगई० संखेज्जगुणं । जसकित्ति-अजसकित्तीसु विसे०। दुगुंछाए संखे० गुणं । भए० विसे० । हस्स-सोगे विसे० । णिद्दा० विसे० । रदि-अरदीसु विसे० । रति आर अरातम कार्मणशरीर में विशेष अधिक है। वक्रियिकशरीरमें विशेष अधिक है। मनुष्यगतिमें संख्यातगणा है। यशकीतिमें और अयशकीर्तिमें । संख्यातगणा । है। जगप्सामें संख्यात । भयमें विशेष अधिक है। हास्यमें विशेष अधिक है। शोकमें विशेष अधिक है। र अरतिमें विशेष अधिक है। अन्यतर वेदमें विशेष अधिक है। दानान्तराय में विशेष अधिक है। इस प्रकार वीर्यान्तराय तक विशेष अधिक क्रमसे ले जाना चाहिये । आगे मन:पर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरण में विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है। अन्यतर संज्वलन कषाय में विशेष अधिक है। ऊंच और नीच गोत्रमें विशेष अधिक है । साता और असाता वेदनीयमें विशेष अधिक है। आहारकशरीरमें असंख्यातगुणा है। इस प्रकार मनुष्यगतिदण्डक समाप्त हुआ। एकेन्द्रिय जीवोंमें जो प्रदेशाग्र वेदा जाता है वह मिथ्यात्व में स्तोक है। अन्यतर अनन्तानुबन्धी कषायमें असंख्यातगुणा है। केवलज्ञानावरण में असंख्यातगुणा है। प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है । प्रचलाप्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरण में विशेष अधिक है। अन्यतर अप्रत्याख्यानावरण कषायमें विशेष अधिक है। अन्यतर प्रत्याख्यानावरण कषायमें विशेष अधिक है। । तिर्यगायुमें अनन्तगुणा है। औदारिकशरीरमें संख्यातगुणा है। तेजसशरीरमें विशेष अधिक है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। वैक्रियिकशरीरमें विशेष अधिक है। तिर्यग्गतिमें संख्यातगुणा है। यशकीर्ति और अयशकीतिमें विशेष अधिक है। जुगुप्सामे संख्यातगुणा है। भयमें विशेष अधिक हैं। हास्य और शोकमें विशेष अधिक है। निद्रामें काप्रती 'जसगितिअजसकित्तसु० दुगुंछ.', ताप्रतौ 'जसकित्ति० अजसकित्तीसु, दुगुंछा. ' __ इति पार:। * अ-काप्रत्योः 'जं इत्येतत्पदं नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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