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________________ ५५२ ) छक्खंडागमे संतकम्म णाणा० अणंतगणं । ओहिणाणा० ओहिदसणावरण अणंतगुणं । सुदणाणाव० अणंतगुणं । चक्खु अगंतगुणं । मदिआव० अणंत गुणं । अण्णदरअपच्चक्खाणकसाओ अणंतगुणो। अण्ण० पच्चक्खा*० अणंतगुणो । अण्ण० अणंताणुबंधि) अगंतगुणं । केवलणाण-केवलदंसणावरणाणं दुव्व तुल्लाणि अणंतगुणाणि । मिच्छत्तमणंतगुणं । पयला० अणंतगुणं । णिद्दा० अणंतगुणं । पयलापयला अणंतगुणं । णिद्दाणिद्दा० अणंतगुणं । थीणगिद्धि० अणंतगुणं । ओरालि० अणंतगणं । वेउव्विय० अणंतगुणं । तिरिक्खाउ० अगंतगुणं । आहार० अगंतगुणं । तेजा. अगंतगुणं । कम्मइय० अणंतगुणं । तिरिक्खग० अणंतगुणं । णीचागोद० अगंतगुणं । अजकित्ति० अणंतगुणं । असाद.अणंत गुणं । जसकित्ति० अणंतगुणं । साद० अणंतगुणं । एवमणुभागउदीरणा समत्ता। ___ पदेसउदीरणाए उक्कस्सओ. मूलपयडिदंडओ । तं जहा- उक्कस्सेण जं पदेसग्गमुदीरिज्जदि तमाउअम्मि थोवं । वेयणीए असंखेज्जगुणं । मोहणीए असंखेज्जगुणं । णाणावरण-दसणावरण-अंतराएसु तुल्लमसंखेज्जगुणं । णाम-गोदेसु तुल्लमसंखेज्जगुणं । एवमोघदंडओ समत्तो। णिरयगईए मणुसगई? (?) संकामिज्जदि तं थोवं । णामा-गोदेसु असंखेज्जगुणं । मन:पर्ययज्ञानावरण अनन्तगणा है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं श्रुतज्ञानावरण अनन्तगुणा है। चक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है । मतिज्ञानावरण अनन्तगुणा है । अन्यतर अप्रत्याख्यानावरण कषाय अनन्तगणी है। अन्यतर प्रत्याख्यानावरण कषाय अनन्तगुणी है । अन्यतर अनन्तानुबन्धी कषाय अनन्तगुगी है । केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण ये दोनों तुल्य व अनन्त गुणे हैं। मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। प्रचला अनन्तगुणी है । निद्रा अनन्तगुणी है । प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी है। निद्रानिद्रा अनन्तगुणी है । स्त्यानगृद्धि अनन्तगुणी है। औदारिकशरीर अनन्तगुणा है। वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा है । तिर्यगायु अनन्तगुणी है । आहारशरीर अनन्तगुणा है। तेजसशरीर अनन्तगुणा है। कार्मणशरीर अनन्तगुणा है। तिर्यग्गति अनन्तगुणी है। नीचगोत्र अनन्तगणा है। अयशकीर्ति अनन्तगुणी है। असातावेदनीय अनन्तगुणी है। यशकीति अनन्तगुणी है। सातावेदनीय अनन्तगुणी है । इस प्रकार अनुभागउदीरणा समाप्त हुई। प्रदेशउदीरणामें उत्कृष्ट मूलप्रकृतिदण्डक इस प्रकार है- उत्कृर्षसे जो प्रदेशाग्र उदीर्ण होता है वह आयु कर्म में सबसे स्तोक है । वेदनीयमें असंख्यातगुणा है। मोहनीयमें असंख्यातगुणा है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन प्रकृतियोंमें वह तुल्य व असंख्यातगुणा है। नाम और गोत्र में तुल्य व असंख्यातगुणा है । इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ। ___ नरकगतिमें जो प्रदेशाग्र आयुमें संक्रान्त होता है वह स्तोक है । नाम और गोत्रमें * ताप्रतौ ' अण्णदरो पच्चक्खाणकसाओ० अण्ण. अपच्चक्वाणक०' इति पाठः । ताप्रती 'एवं मंदाणुभागउदीरजा' इति पाठः। ४ ताप्रती 'उकस्सए' इति पाठः। . ताप्रती 'नास्तीदं Jain Educatio वाक्यम् । अ-काप्रत्योः ‘णिरयगई देवगई । इति पाठ: ! only www.jainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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