SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे अणुभागसंतकम्म अणंताणुबंधीणं जह० संत० कस्स ? विसंजोएदणसंजोएमाणस्स जहण्णबंधे वट्ट माणस्त । अढण्णं कसायाणं जह० संत० कस्स ? सुहमस्स हदसमुप्पत्तियकम्मेण जहण्णीकदाणुभागस्त । हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं जह० संत० कस्स ? चरिमअणुभाग* खंडए वट्टमाणस्स । णवंसयवेद० जह० संत० कस्स? चरिमसमयणवंसयवेदखवयस्स । इथिवेदस्स जहण्णुक्कस्सदो पुण चरिमसमयइत्थिी वेदोदयस्स । पुरिसवेदस्स जह० संत० कस्स ? पुरिसवेदोदयखवयस्स अवगदवेदो होदूण चरिमसमयपबद्ध चरिमसमयसंकामयस्स । कोहसंजलणाए जहण्णाणुभागसंतकम्मं कस्स? कोधेण उवट्ठिदस्स खवयस्स चरिमसमयपबद्ध चरिमसमयसंकामयस्स। माणसंजलणाणं जहण्णाणुभागसंतकम्म पत्थि । मायासंजलणाए जह० संत० कस्स ? मायाए उवट्ठिदस्स खवयस्स चरिमसमयपबद्धस्स । लोहसंजलणाए जह० संत० कस्स ? तिव्वयरहदसमुप्पत्तियचरिमसमयसंकामयस्स एवं जहण्णसामित्तं समत्तं । अनन्तानुबन्धी कषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह उनका विसंयोजन करके पुनः संयोजन करते हुए जघन्य बन्धमें वर्तमान जीवके होता है । आठ कषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह हतसमुत्पत्तिककर्म स्वरूपसे अनुभागको जघन्य कर लेनेवाले सूक्ष्म जीवके होता है। हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्साका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह उनके अन्तिम अनुभागकाण्डकमें वर्तमान जीवके होता है। नपुंसकवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती नपंसकवेदके क्षपकके होता है। स्त्रीवेदका जघन्य व उत्कृष्ट अनभागसत्कर्म अन्तिम समयवर्ती स्त्रीवेदवेदकके होता है। पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जो अपगतवेदी होकर अन्तिम समयप्रबद्धका अन्तिम समयवर्ती संक्रामक है ऐसे पुरुषवेदोदययुक्त क्षपकके उसका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है । संज्वलन क्रोधका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह क्रोधसे उपस्थित क्षपकके होता है जो कि उसके अन्तिम समयप्रबद्धका अन्तिम समयवर्ती संक्रामक है। संज्वलन मानका जघन्य मागसत्कर्म नहीं होता। संज्वलन मायाका जघन्य अनभागसत्कर्म किसके होता है? वह माय से उपस्थित हए उसके अन्तिम सयमप्रबद्धके क्षपकके होता है। संज्वलन लोभका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह तीव्रतर हतसमुत्पत्तिक अन्तिम समयवर्ती संक्रामकके होता है। इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ। ताप्रती 'विगंजोएणणसंजोएमाणस्स' इति पाठः। * ताप्रतौ 'चरिमसमयअणभाग' इति पाठः । B मप्रतिपाठोऽयम् । अ-कापत्योः 'इत्थिवेदस्स जहण्णक्कस्सजहण्णचरिपसमयो इत्थि' ताप्रती 'इत्थिवेदस्स जह० कस्स जहण्णचरिमसमय इत्थि-' इति पाठः । का-ताप्रत्योः 'समयबद्ध' इति पाठः। काप्रती 'समयबंधचरिमसमयसंकामयस्स , ताप्रती समयपबद्धस्स च संकामयस्स ' इति पाठ:Mate & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education Internationaliyanामवस्त
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy