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________________ ५४४ ) छक्खंडागमे संतकम्म णिरयईए णेरइएसु सव्वतिव्वाणुभागं सादं । उच्चागोद-जसकित्तीओ अणंतगुणाओ। कम्मइय० अणंतगुणो। तेजइय० अणंतगुणो। वेउव्विय० अणंतगुणो। मिच्छत्त० अणंतगुणो। ओहिणाण-ओहिदंसणावरणाणं अणंतगुणो । सम्मामिच्छत्ते अणंतगुणो। दाणंतराइय० अणंतगुणो । लाहंतराइय० अणंतगुणो । भोगंतराइय० अणंतगुणो। परिभोगंतराइय० अणंतगुणो। अचवखुदंसणावरण० अणंतगुणो। चक्खुदंस० अणंतगुणो । वीरियंतराइय० अणंतगुणो। सम्मत्त० अणंतगुणो । तिरिक्खगदीए तव्वतिव्वाणुभागं उच्चागोद-जसकित्तीणं । कम्मइय० अणंतगुणं । तेजइय० अणंतगुणं । वेउब्विय० अणंतगुणं । मिच्छत्त० अणंतगुणं । केवलणाण-केवल' दसणावरणाणं अणंतगुणं । अण्णदरो अणंताणुबंधि० अणंतगुणो। अण्णदरो संजलण० अणंतगुणो । अण्णदरो पनचक्खाण० अणंतगुणं । अण्ण० अपच्चक्खाण० अणंतगुणं । मदिआवरण० अणंतगुणं । सुदावरण० अणंतगुणं । ओहिणाण-ओहिदसणावरणाणं अणंतगुणं । मणपज्जवणाणावरण० अणंतगुणं । थीणगिद्धि० अणंतगुणं । णिहाणिद्दा० अणंतगुणं । पयलापयला० अणंतगुणं । णिद्दा० अणंतगुणं । पयला अणंतगुणं । रदि० अणंतगुणं । हस्स० अणंतगुणं । ओरालिय० अणंतगुणं । तिरिक्खाउ० अणंतगुणं । नरकगतिमें नारकियोंमें सातावेदनीय सबसे तीव्र अनुभागवाली प्रकृति है। उससे उच्चगोत्र और यशकीति अनन्तगुणी हैं। कार्मणशरीर अनन्तगुणा है। तैजसशरीर अनन्तगुणा है। वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा है । मिथ्यात्व अनन्तगुणा है । अवधिवानावरण और अवधिदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं। सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। दानान्तराय अनन्तगुणा है । लाभान्तराय अनन्तगुणा है। भोगान्तराय अनन्तगुणा है। परिभोगान्तराय अनन्तगुणा है । अचक्षुदर्शनावरण अनन्तगुणा है। चक्षुदर्शनावरण अनन्त गुणा है। वीर्यान्तराय अनन्तगुणा है। सम्यक्त्व अनन्तगुणा है। तिर्यंचगतिमें उच्चगोत्र और यशकीति सबसे तीव्र अनुभागवाली प्रकृतियां हैं। कार्मणशरीर अनन्तगुणा है। तैजसशरीर अनन्तगुणा है। वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा है। मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं। अनन्तानुबन्धिचतुष्कों अन्यतर अनन्तगुणा है। अन्यतर संज्वलन अनन्तगुणा है। अन्यतर प्रत्याख्यानावरण अनन्तगुणा है । अन्यतर अप्रत्याख्यानावरण अनन्तगुणा है। मतिज्ञानावरण अनन्तगुणा है। श्रुतज्ञानावरण अनन्तगुणा है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण अनन्तगुणे हैं। मनःपर्ययज्ञानावरण अनन्तगुणा है। स्त्यानगृद्धि अनन्तगुणा है । निद्रानिद्रा अनन्तगुणी है । प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी है । निद्रा अनन्तगुणी है। प्रचला अनन्तगुणी है। रति अनन्तगुणी है। हास्य अनन्तगुणा है । औदारिकशरीर अनन्तगुणा है। तिर्यगायु अनन्तगुणा है । असातावेदनीय * प्रतिष 'अणंतगुणहीणाओ' इति पाठः। * ताप्रती 'मिच्छत० ओहिणाण० ओहिदंसणावरण. अणंतगणा' इति पाठः। 8 अप्रतौ 'सम्मामिच्छत्तागं' इति पाठः। अ-ताप्रत्यौ: 'पयला.' इत्येतस्य An Educati स्थाने सुद०', काप्रतो 'सुदणाण.' इति पाठ:vale & Personal use Only www.jainelibrary.org. |
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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