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________________ ५४२ ) छक्खंडागमे संतकम्म लद्धियस्स । मणपज्जवणाणावरणस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मं कस्स? चरिमसमयछदुमत्थस्स विउलमइस्स उक्कस्सलद्धियस्स। केवलणाणावरण-केवलदंसणावरण-पंचंतराइयाणं जहण्णाणुभागसंतकम्म कस्स ? जस्स वा तस्स वा चरिमसमयछदुमत्थस्स। एवं णिद्दापयलाणं । णवरि दुचरिमसमयछदुमत्थस्स सव्वस्स। णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्दीणं जहण्णाणुभागसंतकम्मं कस्स ? सुहमसंतकम्मेण हदसमुप्पत्तिएण वट्टमाणस्स । अण्णदरो एइंदियो बेइंदियो तेइंदियो चरिदियो असण्णी सुहुमो बादरो पज्जत्तो अपज्जत्तो वा जहण्णाणुभागसंतकम्मिओ होज्ज। सादासादाणं जहण्णाणुभागसंतकम्मं कस्स ? चरिमसमयभवसिद्धियस्स जहण्णए उदयट्ठाणे वट्टमाणस्स । ___सम्मत्तस्स जह० संतकम्म कस्स ? चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । सम्मामिच्छत्तस्स जह० संत० कस्स ? चरिमाणुभागखंडए वट्टमाणस्म । मिच्छत्तस्स जह• संत० कस्स? सुहुमेइंदियस्स हदसमुप्पत्तियकम्मेण कयजहण्णाणुभागस्सी। मन:पर्ययज्ञांनावरणका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह उत्कृष्ट लब्धियुक्त विपुलमतिमनःपर्ययज्ञानावरणके धारक अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके होता है। केवल ज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण और पांच अन्तरायका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह जिस किसी भी अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके होता है। इसी प्रकार निद्रा और प्रचलाका भी जघन्य अनुभागसत्कर्म कहना चाहिये । विशेष इतना है कि वह द्विचरम समयवर्ती सब छदमस्थ के होता है। निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि का जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है? हतसमुत्पत्तिक सत्कर्मस्वरूपसे जो सूक्ष्म एकेन्द्रिय वर्तमान है उसके उनका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है। अन्यतर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रोन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञो व अमंजी पंचेन्द्रिय, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त जीव उनके जघन्य अनुभागसत्कर्मसे संयुक्त होता है। साता व असाता वेदनीयका जवन्य सत्कर्म किसके होता है ? वह जघन्य उदयस्थानमें वर्तमान अन्तिम समयवर्ती भव्य जीवके होता है । सम्यक्त्व' प्रकृतिका जघन्य सत्कर्म किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती अक्षीणदर्शनमोहक होता है। सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य सत्कर्म किसके होता है ? वह उसके अन्तिम अनुभागकाण्ड कमें वर्तमान जीवके होता है। मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जिसने हतसमुत्पत्तिककर्म स्वरूपसे उसके अनुभागको जघन्य कर लिया है ऐसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके उसका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है ? ४ मह-सुय-चक्खु-अचक्खूण सुयसमत्तस्स जेटल द्धिस्स । परमोहिस्स ओहिदुग मगणाणं विउलणाणस्स ।। क. प्र. ७, २३. अ-काप्रत्यो: 'सव्वेसि' ताप्रतो 'सव्वेसि ' मप्रतौ 'सबुककस्म' इति पाठः । *ताप्रती 'वडमाणस्स ' इति पाठः। प्रतिषु 'अण्णदुककस्सो' इति पाठः। काप्रती 'जहणसंतकम्म' ताप्रतौ 'जहण्णदिदि (अणुभाग) संतकम्म ' इति पाठः। 8ताप्रती 'जहण्णीकदाणभागस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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