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________________ १९ पोग्गल-अत्ताणुयोगद्दारं पउमदलगब्भउरं देवं पउमप्पहं णमंसित्ता । पोग्गलअत्तणुओअं समासदो वण्णइसामो ॥१॥ पोग्गल-अत्ते त्ति अणुयोगद्दारे पोग्गलो णिक्खिविदव्वो । तं जहा- णामपोग्गलो ट्ठवणपोग्गलो दव्वपोग्गलो भावपोग्गलो चेदि चउविव्हो पोग्गलो । णाम-ढवणापोग्गला सुगमा । दव्वपोग्गलो आगम-णोआगमदव्वपोग्गलभेदेण दुविहो। आगमपोग्गलो सुगमो । णोआगमपोग्गलो तिविहो जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तं चेदि । जाणुगसरीर-भवियं गदं । तव्वदिरित्तपोग्गलो थप्पो। भावपोग्गलो दुविहो आगमणोआगमभावपोग्गलभेएण । आगमो सुगमो। णोआगमभावपोग्गलो रूव-रस-गंधफासादिभेएण अणेयविहो । तत्थ णोआगमतव्वदिरित्तदन्वपोग्गले पयदं । णेगमणयस्स वत्तव्वएण सव्वदव्वं पोग्गलो । आत्तं णाम गृहीतम् । आत्ताः गृहीताः आत्मसात्कृताः पुद्गलाः पुद्गलात्ताः । ते च पुद्गलाः षड्भिः प्रकारैरात्मसात् क्रियन्ते। तं जहा- गहणदो परिणामदो उवभोगदो आहारदो ममत्तीदो परिग्गहादो पद्मपत्रके गर्भके समान गौर वर्णवाले पद्मप्रभ जिनेन्द्रको नमस्कार करके पुद्गलात्त अनुयोगद्वारका संक्षेपमें वर्णन करते हैं ।। १ ।। ___'पुद्गलात्त' इस अनुयोगद्वारमें पुद्गलका निक्षेप किया जाता है । यथा- नामपुद्गल, स्थापनापुद्गल, द्रव्यपुद्गल और भावपुद्गलके भेदसे पुद्गल चार प्रकारका है। इनमें नामपुद्गल और स्थापनापुद्गल सुगम हैं । द्रव्यपुद्गल आगमद्रव्यपुद्गल और नोआगमद्रव्यपुद्गलके भेदसे दो प्रकारका है । आगमद्रव्यपुद्गल सुगम है । नोआगमद्रव्यपुद्गल तीन प्रकारका है- ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त । ज्ञायकशरीर और भावी अवगत हैं । तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यपुद्गलको अभी छोड़ते हैं। आगम और नोआगम भावपुद्गलके भेदसे भावपुद्गल दो प्रकारका है। उनमें आगमभावपुद्गल सुगम है । नोआगमभावपुद्गल रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदिके भेदसे अनेक प्रकारका है । उनमें यहां तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य द्गल प्रकृत हैं। नैगम नयके विषय स्वरूपसे सब द्रव्य पुद्गल हैं । आत्त शब्द का अर्थ गृहीत है। अतएव 'आत्ताः पुद्गलाः पुद्गलात्ताः ' इस विग्रहके अनुसार यहां पुद्गलात्त पदसे आत्मसात् किये गये पुद्गलोंका ग्रहण है । वे पुद्गल छह प्रकारसे आत्मसात् किये जाते हैं । यथा ग्रहणसे, परिणामसे, उपभोगसे, आहारसे, ममत्वसे और परिग्रहसे । इनकी विभाषा इस प्रकार है ० अ-काप्रत्यो: 'दवपोग्गला' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org :
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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