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छक्खंडागमे संतकम्म
विसुज्झमाणस्स दो वियप्पा- किण्णलेस्सहाणीए एक्को, णीललेस्ससंकमे बिदियो चेव । एवं किण्णलेस्सस्स परिणमणविहाणं समत्तं ।
संपहि णीललेस्सस्स वुच्चदे- णीललेस्सादो संकिलिस्संतो णीललेस्सं छट्ठाणपदिदेण वढिसंकमट्ठाणेण संकमेइ, अधवा किण्णलेस्सं अणंतगुणवढिकमेण परिणमदि । एवं संकिलेसंतस्त दो वियप्पा। णीललेस्सादो विसुज्झंतो णीललेस्साए छट्ठाणपदिदाए हाणीए हायदि, काउलेस्साए अणंतगुणहीणहाणीए* वि हायमाणो परिणमदि । एवं णीललेस्सादो विसुज्झमाणस्स दो वियप्पा । एवं णीललेस्सस्स परिणमणविहाणं समत्तं ।
काउलेस्सस्स वुच्चदे । तं जहा- काउलेस्सियो संकिलिस्संतो सट्टाणे अणियमेण* छट्ठाणपदिदाए वड्ढीए वड्ढदि, णीललेस्साए अणंतगुणवड्ढीए णियमेण परिणमदि । एवं संकिलिस्संतस्स दो वियप्पा । काउलेस्सियो विसुज्झमाणो सटाणे छट्ठाणपदिदाए हाणीए हायदि, तेउलेस्सिए अणंतगुणहीणहाणीए परिणमदि । एवं विसुज्झमाणस्स दो वियप्पा । काउलेस्सस्स संकमणविहाणं समत्तं ।
तेउलेस्सिओ संकिलिस्संतो सत्थाणे छट्ठाणपदिदाए हाणीए हायदि, काउलेस्साए जीवका कृष्णलेश्याकी वृद्धि द्वारा एक विकल्प होता है। उसी के विशुद्धिको प्राप्त होनेपर दो विकल्प होते हैं-- कृष्णलेश्याकी हानिसे एक, और नीललेश्याके संक्रममें दूसरा विकल्प होता है। इस प्रकार कृष्णलेश्यावाले जीवका परिणमनविधान समाप्त हुआ।
अब नीललेश्यावाले जीवके परिणमनविधानका कथन करते हैं- नीललेश्यासे संक्लेशको प्राप्त होता हुआ षट्स्थानपतित वृद्धिसंक्रमस्थानके द्वारा नीललेश्यामें ही संक्रमण करता है। अथवा वह अनन्तगुणवृद्धिके क्रमसे कृष्णलेश्यामें परिणत होता है। इस प्रकार संक्लेशको प्राप्त होनेपर दो विकल्प होते हैं। नीललेश्यासे विशुद्धिको प्राप्त होनेवाला षट्स्थानपतित हानिके द्वारा नीललेश्याकी हानिको प्राप्त होता है। वह अनन्तगुणहीन हानिके द्वारा हानिको प्राप्त होता हुआ कापोतलेश्या रूपसे परिणत होता है। इस प्रकार नीललेश्यासे विशुद्धिको प्राप्त होनेवालेके दो विकल्प हैं। इस प्रकार नीललेश्यावालेका परिणमनविधान समाप्त हुआ।
कापोतलेश्यावा लेके परिणमनका विधान कहते हैं । यथा- कापोतलेश्यावाला संक्लेशको प्राप्त होता हुआ अनियमसे षट्स्थानपतिन वृद्धिके द्वारा वृद्धिंगत होता है । वही अनन्तगुणवृद्धिके द्वारा नियमसे नीललेश्यामें परिणत होता है। इस प्रकार संक्लेशको प्राप्त हुए कापोतलेश्यायुक्त जीवके दो विकल्प हैं। कापोतलेश्यावाला विशुद्धिको प्राप्त होता हुआ षट्स्थानपतित हानिके द्वारा स्वस्थान में हानिको प्राप्त होता है। वही अनन्तगुणहीन हानि द्वारा तेजलेश्यामें परिणत होता है। इस प्रकार विशुद्धिको प्राप्त होते हुए कापोतलेश्यावाले के दो विकल्प हैं। कापोतलेश्यावालेके संक्रमणका विधान समाप्त हुआ।।
तेजलेश्यावाला जीव संक्लेशको प्राप्त होकर षट्स्थानपतित हानिके द्वारा स्वस्थानमें 0 अ-काप्रत्योः 'विदिया' इति पाठः। ४ अ-काप्रत्योः 'संकमे' इति पाठः । . अ-काप्रत्योः ‘णीललेस्सा' इति पाठः। अ-काप्रत्योः 'हीणाहागीए' इति पाठः । ताप्रतौ 'अणियमेण' इति पाठः । 8 अ-काप्रत्यो: 'तेउलेस्सिए' इति पाठः।
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