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लेस्साणु पोगद्दारे किण्णलेस्सादिदव्वगुणाणं अप्पाबहुअं
( ४८७ कालयवण्णुक्कळं जं सरीरं तं किण्णलेस्सियं । णीलवण्णुक्कळं जं तं णीललेस्सियं । लोहियवण्णुक्कटें जं सरीरं तं तेउलेस्सियं । हालिद्दवण्णुक्कठे पम्मलेस्सियं । सुक्किल्लवण्णुक्कट्ठ सुक्कलेस्सियं । एदेहि वण्णेहि वज्जिय वण्णंतरावण्णं काउलेस्सियं ।
संपहि य लेस्सावंतचक्खुप्पासदव्वस्त गुणाणमप्पाबहुअं कीरदे । तं जहा-किण्णलेस्सदव्वस्स सुक्किलगुणा थोवा, हालिया अणंतगुणा, लोहिदया अणंतगुणा, णीलया अणंतगुणा, कालया अणंतगुणा । णीललेस्सदव्वस्स सुक्किलगुणा थोवा, हालिद्दया अणंतगुणा, लोहिदया अणंतगुणा, कालया अणंतगुणा, णीलया अणंतगुणा। काउलेस्सिए तिण्णिवियप्पा । तं जहा-सुक्किला थोवा, हालिद्दया अणंतगुणा, कालया अणंतगुणा, लोहिदया अणंतगुणा, णीलया अणंतगुणा । बिदियवियप्पो उच्चदे-सुक्किला थोवा, कालया अणंतगुणा, हालिया अणंतगुणा, णीलया अणंतगुणा, लोहिदया अणंतगुणा । तदियवियप्पो उच्चदे-कालया थोवा, सुक्किला अणंतगुणा, णीलया अणं० गुणा, हालिद्दया अणंतगु०, लोहिदया अणंतगुणा । तेउलेस्सिएसु कालगुणा थोवा, णीलया अणंतगुणा, सुक्किला अणंतगुणा, हालिद्दया अणंतगुणा, लोहिदया अणंतगुणा। पम्माए तिण्णिवियप्पा । तं जहा*-कालया थोवा, णीलया अणंतगुणा, सुक्किलया अणंतगुणा,
गया है। यथा-- जिस शरीरमें श्याम वर्णकी उत्कृष्टता है वह कृष्णलेश्या युक्त कहा जाता है। जिसमें नील वर्णकी प्रधानता है वह नीललेश्यावाला, लोहित-वर्णकी प्रधानता युक्त जो शरीर है वह तेजलेश्यावाला, हरिद्रा वर्णकी उत्कर्षता युक्त शरीर पद्मलेश्यावाला, तथा शुक्ल वर्णकी प्रधानता युक्त शरीर शुक्ललेश्यावाला कहा जाता है। इन वर्णोंको छोड़कर वर्णान्तरको प्राप्त हुए शरीरको कापोतलेश्यावाला समझना चाहिये।
अब चक्षुसे ग्रहण किये जानेवाले लेश्यायुक्त द्रव्यके गुणोंके अल्पबहुत्वको बतलाते हैं । यथा-- कृष्णलेश्यायुक्त द्रव्यके शुक्ल गुण स्तोक, हारिद्र गुण अनन्तगुणे, लोहित गुण अनन्तगुणे, नील गुण अनन्तगुणे, और श्याम गुण अनन्तगुणे होते हैं । नीललेश्यायुक्त द्रव्यके शुक्ल गुण स्तोक, हारिद्र गुण अनन्तगुणे, लोहित गुण अनन्तगुणे, श्याम गुण अनन्तगुणे। और नील गुण अनन्तगुणे होते हैं।
कापोतलेश्यावालेके विषयमें तीन विकल्प हैं । यथा- उसके शुक्ल गुण स्तोक हैं, हारिद्र गुण अनन्तगुणे हैं, श्याम गुण अनन्तगुणे हैं, लोहित गुण अनन्तगुणे हैं, और नील गुण अनन्तगुणे हैं। द्वितीय विकल्पका कथन करते हैं- शुक्ल गुण स्तोक हैं, श्याम गुण अनन्तगुणे हैं, हारिद्र गुण अनन्तगुणे हैं, नील गुण अनन्तगुणे हैं, और लोहित गुण अनन्तगुणे हैं। तृतीय विकल्पका कथन करते हैं- श्याम गुण स्तोक हैं, शुक्ल गुण अनन्तगुणे हैं, नील गुण अनन्तगुणे हैं, हारिद्र गुण अनन्तगुणे हैं, और लोहितगुण अनन्तगुणे हैं
तेजलेश्यावालोंमें श्याम गुण स्तोक, नील गुण अनन्तगुणे, शुक्ल गुण अनन्तगुणे, हारिद्र गुण अनन्तगुणे, और लोहित गुण अनन्त गुण होते हैं। पद्मलेश्यावालेके विषयमें तीन विकल्प हैं । यथा- प्रथम विकल्पके अनुसार श्याम गुण स्तोक, नील गुण अनन्तगुणे, शुक्ल
* अ-काप्रत्योः ' वियप्पा जहा' इति पाठः ।
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