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छक्खंडागमे संतकम्म
लेस्सियाणि काणिचि काउ० काणिचि तेउ० काणिचि पम्म०काणिचि सुक्कलेस्सियाणि त्ति । तिरिक्खजोणिणीणं मणुस्साणं मणुसिणीणं च छच्चेव लेस्साओ। देवाणं मूलणिव्वत्तणादो तेउ-पम्म-सुक्काणि ति तिलेस्साणि सरीराणि, उत्तरणिवत्तणादो छलेस्साणि सरीराणि। देवीणं मूलणिवत्तणादो तेउलेस्साणि सरीराणि, उत्तरणिव्वत्तणादो छलेस्साणि । णेरइयाणं किण्णलेस्साणि । पुढविकाइयाणं छलेस्साणि । आउकाइयाण सुक्कलेस्साणि । अगणिकाइयाणं तेउलेस्साणि । वाउकाइयाणं काउलेस्साणि। वण्णप्फदिकाइयाणं छलेस्साणि । सन्वेसि सुहमाणं सरोराणि काउलेस्साणि। जहा बादरपज्जत्ताणं तहा बादरअपज्जत्ताणं । ओरालियसरीराणि छलेस्साणि । वेउब्वियं मूलणिवत्तणादो किण्णलेस्सियं तेउले० पम्मले० सुक्कले० वा । तेजइयं तेउले० । कम्मइयं सुक्कलेस्सियं। सरीरेसु सव्ववण्णपोग्गलेसु संतेसु कधमेदस्स सरीरस्स एसा चेव लेस्सा होदि त्ति णियमो ? ण एस दोसो, उक्कट्ठवण्णं पडुच्च तण्णिद्देसादो। तं जहा
कितने ही नीललेश्यावाले, कितने ही कापोतलेश्यावाले, कितने ही तेजलेश्यावाले, कितने ही पद्मलेश्यावाले, और कितने ही शुक्ललेश्यावाले होते हैं। तिर्यंच योनिमतियों, मनुष्यों और मनुष्यनियोंके भी छहों लेश्यायें होती हैं। देवोंके शरीर मूल निर्वर्तनाकी अपेक्षा तेज, पद्म और शुक्ल इन तीन लेश्याओंसे युक्त होते हैं। परन्तु उत्तर निर्वर्तनाकी अपेक्षा उनके शरीर छहों लेश्याओंसे संयुक्य होते हैं। देवियोंके शरीर मूल निर्वर्तनाकी अपेक्षा तेजलेश्यासे संयुक्त होते हैं, परन्तु उत्तर निर्वर्तनोंकी अपेक्षा वे छहों लेश्याओं में से किसी भी लेश्यासे संयुक्त होते हैं। नारकियोंके शरीर कृष्णलेश्यासे युक्त होते हैं। पृथिवीकायिकोंके शरीर छहों लेश्याओंमें किसी भी लेश्यासे संयुक्त होते हैं । अप्कायिक जीवोंके शरीर शुक्ललेश्यावाले होते हैं । अग्निकायिक जीवोंके शरीर तेजलेश्याओंसे युक्त होते हैं। वायुकायिकों के शरीर कापोतलेश्वावाले तथा वनस्पतिकायिकोंके शरीर छहों लेश्यावाले होते हैं। सब सूक्ष्म जीवोंके शरीर कापोतलेश्यासे संयुक्त होते हैं। बादर अपर्याप्तोंके शरीर बादर पर्याप्तोंके समान लेश्यावाले होते हैं। औदारिकशरीर छह लेश्या युक्त होते हैं। वैक्रियिकशरीर मूलनिर्वर्तनाकी अपेक्षा कृष्णलेश्या, तेजलेश्या, पद्मलेश्या अथवा शुक्ललेश्यासे संयुक्त होता है। तैजसशरीर तेजलेश्यावाला तथा कार्मणशरीर शुक्ललेश्यावाला होता है।
__ शंका-- शरीर तो सब वर्णवाले पुद्गलोंसे संयुक्त होते हैं; फिर इस शरीरकी यही लेश्या होती है, ऐसा नियम कैसे हो सकता है ?
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, उत्कृष्ट वर्णकी अपेक्षा वैसा निर्देश किया
28 अप्रतो 'सुक्कलेस्सिया त्ति' इति पाठः ।
णिरया किण्हा कप्पा भावाणुगया हु तिसुर-णर-तिरिये। उत्तरदेहे छक्कं मोगे रवि-चंद-हरिदंगा ।। बादरआउ-तेऊ सुक्का तेऊ य वाउकायाणं • गोमुत्त-मुग्गवण्णा कमसो अव्वत्तवपणो य ।। सम्वेसि सुहमागं कावोदा सव्व विग्महे सुक्का। सब्धो मिस्सो देहो कवोदवण्गो हवे णियमा ।। गो. जी. ४९५-९७.
४ ताप्रतौ ' तेउलेस्सियं तेजइयं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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