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________________ ४७८ ) छक्खंडागमे संतकम्म कस्स? जत्थ एदेसि कम्माणं तप्पाओग्गजहण्णाणं जहण्णमवट्ठाणं होज्ज तत्थ जहण्णिया वड्ढी हाणी अवठ्ठाणं वा होज्ज । अप्पसत्थविहायगइ-थावर-सुहुम-अपज्जत्तसाहारणसरीर-दूभग-अणादेज्ज-दुस्सराणं णवंसयवेदभंगो। णीचागोदस्स वि णवंसयवेदभंगो । उच्चागोदस्स मणुसगइभंगो । एवं जहण्णसामित्तं समत्तं । ____ अप्पाबहुअं। तं जहा- मदिआवरणस्स उक्कस्समवट्ठाणं थोवं । वड्ढी विसेसाहिया, भिण्णसामित्तादो। हाणी असंखेज्जगुणा । सेसचदुणाणावरण-चदुदंसणावरणपंचंतराइयाणं मदिणाणावरणभंगो। णिहा-पयलाणं उक्कस्समवट्ठाणं थोवं । हाणी असंखेज्जगुणा । वड्ढी असंखेज्जगणा। थीणगिद्धितियस्स णिद्दाभंगो । सादस्स उक्कस्सिया हाणी थोवा । वड्ढी विसेसाहिया । असादस्स उक्कस्सिया हाणी थोवा। वड्ढी असंखे० गुणा। मिच्छत्तस्स उक्कस्समवट्ठाणं (थोवं) । हाणी असंखे० गुणा । वड्ढी असंखे० गुणा । सम्मत्तस्स उक्क० वड्ढी थोवा, उव्वेलणकंडयचरिमसमए जादत्तादो । उक्क० हाणी असंखे० गुणा, दुसमयमिच्छाइट्ठिस्स जादत्तादो । अवट्ठाणं णस्थि । सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सिया हागी थोवा । वड्ढी असंखे० गुणा । अणंताणुबंधोणं उक्कस्समवट्ठाणं थोवं । हाणी असंखे० गुणा । वड्ढी असंखे० गुणा । अढण्णं कसायाणमुक्कस्समवट्ठाणं थोवं । हाणी असंखे० गुणा । वड्ढी असंखे० गुणा। तिण्णं जघन्य वद्धि किसके होती है ? जहांपर इन तत्प्रायोग्य जघन्य कर्मोंका जघन्य अवस्थान होता है वहांपर उनकी जघन्य वद्धि, हानि व अवस्थान होता है। अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणशरीर, दुर्भग, अनादेय और दुस्वर प्रकृतियों की प्ररूपणा नपुंसकवेदके समान है। नीचगोत्रकी भी प्ररूपणा नपुंसकवेदके समान है। उच्चगोत्रकी प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है। इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ। अल्पबहुत्वका कथन करते हैं। वह इकार है- मतिज्ञानावरणका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है। वृद्धि विशेष अधिक है, क्योंकि, उसका स्वामी भिन्न है । हानि असंख्यातगुणी है। शेष चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय प्रकृतियोंकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। निद्रा और प्रचलाका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । हानि असंख्यातगुणी है। वृद्धि असंख्यातगुणी है । स्त्यानगृद्धि आदि तीनकी प्ररूपणा निद्राके समान है। सातावेदनीयकी उत्कृष्ट हानि स्तोक है। वृद्धि विशेष अधिक है । असाताकी उत्कृष्ट हानि स्तोक है। वृद्धि असंख्यातगुणी है। मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है। हानि असंख्यातगुणी है। वृद्धि असंख्यातगुणा है। सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट वृद्धि स्तोक है, क्योंकि, वह उद्वेलनकाण्डकके अन्तिम समयमें होतो है । उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है, क्योंकि, वह द्वितीय समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके होती है । अवस्थान नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानि स्तोक है । वृद्धि असंख्यातगुणी है । अनन्तानुबन्धी कषायोंका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । हानि असंख्यातगुणी है। वृध्दि असंख्यातगुणी है। आठ कषायोंका उत्कृष्ट अवस्थान स्तोक है । हानि असंख्यातगुणी है । वृद्धि असंख्यातगुणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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