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________________ ४७६ ) छक्खंडागमे संतकम्म णिरयगइणामाए जह• हाणी कस्स? एइंदियकम्मेण जहण्णएण णिरयगइणाममंतोमुहुत्तं संजोएदूण तदो बावीससागरोवमट्ठिदिणिरयं गदो, बावीससागरोवमाणं अंतोमुत्ते सेसे सम्मत्तं पडिवण्णो, मदो मणुसो जादो, एक्कत्तीससागरोवमट्टिदि देवदि गदो, अंतोमुत्तं उववण्णो मिच्छत्तं गदो, एक्कत्तीससागरोवमेसु अंतोमुहुत्ते सेसेसु सम्मत्तं पडिवण्णो, बे-छावट्ठीयो अणुपालेदूण सोधम्मकप्पम्हि मिच्छत्तं गदो संतो एइंदिए गदो, तदो सव्वमहंतेण उव्वेल्लणकालेण उवेल्लमाणस्स दुचरिमउव्वेलणखंडयस्स चरिमसमए जहणिया हाणी । तस्सेव से काले जह० वड्ढी । मणुसगइणामाए जह० वड्ढी कस्स? जो एइंदियकम्मेण वस्सपुधत्तेण अणुतरवेमाणिएसु देवेसु उववण्णो, तस्स तप्पाओग्गजहण्णसंतकम्मस्स जम्हि अवट्ठाणं होदि तम्हि जह० वड्ढी हाणी अवट्ठाणं वा होदि। देबगइणामाए जहण्णवड्ढि*हाणि-अवट्ठाणाणि कस्स? ( जो ) एइंदियकम्मेण तिपलिदोवमिएसु उववण्णो तस्स जाधे तप्पाओग्गजहण्णएण कम्मेण अवट्ठाणं होज्ज तम्हि जह० वड्ढी अवट्ठाणं वा । तिरिक्खगइणामाए जहणिया हाणी कस्स? जो जहण्णएण कम्मेण तिपलिदोवमिएसु उववण्णो, अंतोमुहुत्ते सेसे सम्मत्तं पडिवण्णो, तदो देवेसु पलिदोवमपुधत्ताउछिदिएसु नरकगति नामकर्मकी जघन्य हानि किसके होती है ? जो जवन्य एकेन्द्रिय योग्य कर्मके साथ अन्तर्मुहूर्त काल तक नरकगति नामकर्मका संयोजन करके पश्चात् बाईस सागरोपम आयुवाले नरकको प्राप्त हुआ है, बाईस सागरोपमोंमें अन्तर्मुहुर्त शेष रहनेपर सम्यक्त्वको प्राप्त होकर मरा व मनुष्य हुआ है, पश्चात् इकतीस सागरोपम स्थितिवाली देवगतिको प्राप्त होकर उत्पन्न होनेके पश्चात् अन्तर्मुहूर्तमें मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ है, फिर इकतीस सागरोपमोंने अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है, दो छयासठ सागरोपम कल तक सम्यक्त्वका पालन कर सौधर्म कल्पमें मिथ्यात्वको प्राप्त होता हुआ एकेन्द्रियमें गया है, और तत्पश्चात् जो सबसे महान् उद्वेलनकाल द्वारा उद्वेलना कर रहा है। उसके द्विचरम उद्वेलनकांडकके अंतिम समयमें नरकगति नामकर्मकी जघन्य हानि होती है । उसीके अनन्तर काल में उसकी जघन्य वृद्धि होती है। मनुष्यगति नामकर्मकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो एकेन्द्रिय योग्य कर्मके साथ वर्षपृथक्त्वमें अनुत्तर विमानवासी देवोंमें उत्पन्न हुआ है उसके तत्प्रायोग्य जघन्य सत्कर्म का जहां अवस्थान होता है वहां उसकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान होता है। देवगति नामकर्मकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान किसके होता हैं ? जो एकेन्द्रिय योग्य सत्कर्म के साथ तीन पल्योपम आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ है उसके जब तत्प्रायोग्य जघन्य सत्कर्म के साथ अवस्थान होता है तब उसकी जघन्य वद्धि हानि और अवस्थान होता है। तिर्यगति नामकर्मकी जघन्य हानि किसके होती है? जो जघन्य सत्कर्मके साथ तीन पल्योपम आय वालोंमें उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है, तत्पश्चात् पल्योपमपृथक्त्व आयुस्थिति काप्रतौ — अंतोमुहुत्तेसु सेसेसु ' ताप्रतौ — अंतोमुहुत्त सेसेसु' इति पाठः । * अ-काप्रत्योः 'णामाए दीहणवड्ढी' ताप्रतौ । णामाए वडिढ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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