SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ ) छक्खंडागमे संतकम्म असादबंधो तदो बिदियसमए जहणिया वड्ढी सादस्स । जिस्से असादबंधाए जह० वड्ढी णिप्फण्णा तं चेव असादस्स बंधद्धं दोहं बंधिऊण तिस्से चरिमसमए जह० हाणी सादस्स अवट्ठाणं व अस्थि । जहा सादस्स तहा असादस्स । णवरि चदुक्खुत्तो कसाया उवसामेयव्वा । जाओ च सादं जहण्णं कुणमाणेण असादबधगद्धाओ कदाओ, ताओ चेव असादस्स जहण्णं कुणमाणेण सादबंधगद्धाओ कायवाओ। मिच्छत्तस्स जहणिया वड्ढी कस्स? जस्स तप्पाओग्गजहण्णमिच्छत्तसंतकम्मस्स अवट्ठाणं होज्ज तस्स मिच्छत्तस्स जह० वड्ढी हाणी वा अवट्ठाणं वा होज्ज । सस्मत्तस्स जह० वड्ढी कस्स? जो जहण्णएण कम्मेण सम्मत्तं लहिदूण बे-छावट्ठीयो अणुपालिदूण पडिवदिदो, सब्वमहंतेण उव्वेलणकालेण उव्वेल्लमाणस्स अपच्छिमस्स द्विदिखंडयस्स पढमसमए जहणिया वड्ढी । दुचरिमद्विदिखंडयस चरिमसमए जहणिया हाणी । अवढाणं व अस्थि । सम्मामिच्छत्तस्स सम्मत्तभंगो। अणंताणुबंधीणं जहणिया वड्ढी कस्स? अमवसिद्धियपाओग्गेण जहण्णण कम्मेण जो आगदो संजमासंजम-संजमगुणसेढीहि कम्मं खवेदूण कसाए अणुवसामेदूण एइंदिएसु गदो, तस्स जम्हि योगासेसकम्मस्स (?) अवट्ठाणं हीदि तम्हि जहणिया वड्ढी हाणी अवट्ठाणं (वा) होज्ज। एसो ताव एक्को उवदेसो । अण्णेण उवएसेण अणंताणुबंधीणं विशेष अधिक हो जाता है, तत्पश्चात् जब असाताका बन्ध होता है तब उसके द्वितीय समयमें सातावेदनीयकी जघन्य वृद्धि होती है । जिस असाताबन्धककालमें जघन्य वृध्दि उत्पन्न हुई है उसी दीर्घ असाताबन्धककालमें बांधकर उसके अन्तिम समयमें सातावेदनीयकी जघन्य हानि होती है । सातावेदनीयका अवस्थान नहीं है । जैसे सातावेदनीयकी प्ररूपणा की गयी है वैसे ही असातावेदनीयकी भी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि चार वार कषायोंकी उपशामना चाहिये इसके अतिरिक्त सातावेदनीयको जघन्य करनेवाले जीवके द्वारा जो असाताबन्धककाल किये गये हैं वे ही असातावेदनीयको जघन्य करनेवालेके द्वारा साताबन्धककाल कराने चाहिये। मिथ्यात्वकी जघन्य वृध्दि किसके होती है? तत्प्रायोग्य जघन्य मिथ्यात्वसत्कर्म युक्त जिस जीवके अवस्थानसंक्रम होता है उसके मिथ्यात्व की जघन्य वृध्दि, हानि और अवस्थान होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिकी जघन्य वृध्दि किसके होती है ? जो जघन्य सत्कर्म के साथ सम्यक्त्वको प्राप्त कर व उसका दो छयासठ सागरोपम काल तक पालन करके च्युत होता हुआ सबसे महान् उद्वेलन कालके द्वारा उद्वेलना कर रहा है उसके अन्तिम स्थितिकाण्डकके प्रथम समयमें उसकी जघन्य वृध्दि होती है। द्विचरम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयमें उसकी जघन्य हानि होती है। अवस्थान नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वकी प्ररूपणा सम्यक्त्वके समान है। अनन्तानुबन्धी कषायोंकी जघन्य वृध्दि किसके होती है ? जो अभव्यसिध्दिक प्रायोग्य जघन्य कर्मके साथ आकर संयमासंयम व संयम गुणश्रेणियोंके द्वारा कर्मका क्षय कर तथा कषायोंको न उपशमा कर एकेन्द्रियोंमें गया है उसके जिस जघन्य योगमें सत्कर्म का अवस्थान होता है उसमें उनकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान होता है। यह एक उपदेश है । दूसरे उपदेशके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy