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________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेससंकमो ( ४७३ उक्क० वड्ढी । चउत्थीए उवसामणाए मदचरिमसमयसुहमसांपराइयस्स देवेसुप्पज्जिय समयाहियावलियादिक्कस्स उक्कस्सिया हाणी । अवट्ठाणं णेव अस्थि । णीचागोदस्स उक्कस्सिया वड्ढी कस्स? चरिमसमयसुहमसांपराइयस्स खवयस्स । उक्क० हाणी कस्स? उवसामओ चरिमसमयसुहमसांपराइयो मदो संतो जो देवो जादो तस्स पढमसमए उक्क० हाणी। अवट्ठाणं व अस्थि । उच्चागोदस्स वड्ढि-हाणि अवढाणाणं मणुसगइभंगा । एवमुक्कस्ससामित्तं समत्तं । मदिआवरणस्स जहणिया वड्ढी कस्स? जो जहण्णएण संतकम्मेण चदुक्खुत्तो कसाए उवसामेदूण एइंदिएसु गदो तत्थ जाधे बंधो च णिज्जरा चव हुसमो तस्स ताधे जहणिया वड्ढी हाणी अवट्ठाणं वा होदि । सेसचदुणाणावरण-णवदसणावरणपंचंतराइयाणं मदिणाणावरणभंगो । सादस्स जह० वड्ढी कस्स? जो जहण्णेण संतकम्मेण कसाए अणुवसामेदूण संजमासंजम-संजमगुणसेडीहि बहुक्खुत्तो कम्म खवेदूण एइंदिए सु गदो, तत्थ सव्वचिरं कालं जोगजवमज्झस्स हेट्ठा बंधिदूण सव्वमहंतीयो असादबंधगद्धाओ कादूण तदो जं तं सवचिरं कालं जोगजवमज्झस्स हेट्ठा बंधिदाओ तस्स कालस्स पज्जवसाणबंधगद्धाए तिस्से अपच्छिमाए सादबंधगद्धाए समऊणाए आवलियासेसाए णिज्जरादो किंचि विसेसुत्तरो बंधो जादो, तदो जाधे मरणको प्राप्त हुए अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके देवोंमें उत्पन्न होकर एक समय अधिक आवली मात्र कालके वीतनेपर उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान है ही नहीं। नीचगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है? वह अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके होती है। उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक मरणको प्राप्त होकर देव हो जाता है उसके प्रथम समयमें उसकी उत्कृष्ट हानि होती है। अवस्थान है ही नहीं। उच्चगोत्रकी वृद्धि, हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा मनुष्यगतिके समान है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ। मतिज्ञानावरणकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो जघन्य सत्कर्म के साथ चार वार कषायोंको उपशमा कर एकेद्रियोंमें गया है उसके वहां जब बन्ध और निर्जरा दोनों समान होते हैं तब उसकी जघन्य वृद्धि हानि और अवस्थान होता है। शेष चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण और पांच अन्तराय प्रकृतियोंकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। सातावेदनीयकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो जधन्य सत्कर्म के साथ कषायोंको न उपशमा कर संयमासंयम और संयम गुणश्रेणियों द्वारा बहुत वार कर्मका क्षयकर एकेन्द्रियों में गया है और वहांपर सबसे दीर्घ काल तक योगयवमध्यके नीचे बांधकर सबसे बड असातबन्धककालोंको करके पश्चात् जिस सर्वचिर कालके द्वारा योगयवमध्यके नीचे बन्ध किया है उस कालके अन्तिम बन्धककालमें उस अन्तिम सातबन्धककालमें एक समय कम आवलीके शेष रहनेपर निर्जराकी अपेक्षा बन्ध कुछ ४ अ-काप्रत्योः · समयाहियावलियादि उक्स्स उक्कस्सिया', ताप्रतौ समयाहियावलियाहि ( उक्कस्स) उक्कस्सिया' इति पाठः। * मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु ' उवसामेदूण' इति पाठः । * काप्रतौ ' चदुक्खुत्तो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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