SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७२ ) छक्खंडागमें संत कम्म . मद्धुवबंधिणामपडीणं अव्पसत्थधुवबंधिणामपराडिभंगो। णवरि अवठाणं णत्थि । परघाद- उस्सास-पसत्थविहायगइ-तस बादर- पज्जत्त- पत्तेयसरीर-सुभगादेज्ज- सुस्सराणमुकस्सिया वड्ढी कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो बे-छावट्ठीओ सम्मत्तमणुपालेगण चदुक्खुत्तो कमाए उवसामेदृण तदो खवेंतस्स - परभवियणामाणं बंधवोच्छेदादो आवलियं गदस्स उक्कस्सिया वड्ढी । तस्सेव से काले उक्क हाणी । अवट्ठाणं जहा मणुसगइणामाए तहा कायव्वं । आदावुज्जोवणामाणं उक्क वड्ढी सव्वसंकमे दादव्वा । उक्क० हाणी कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो पढमदाए (कसाए) उवसामेण चरिमसमयसुहुमसांपराइयो संतो मदो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क०हाणी । अवट्ठाणं णेव अत्थि । अपसत्थविहायगड-अथिर असुभ अजसकित्तीणं उक्क o वड्ढी हाणी वा जहा अप्पसस्थाणं संठाणाणं कदा तहा कायव्वा । थिर जसकित्ति-सुभाणं एदासि तिष्णं णामपयडीणं उक्क ० ०वड्ढी कस्स? जो गुणिदकम्मंसियो चदुक्खुत्तो कसाए उवसामेदूण तदो खवेदि तस्स खवेमाणस्स परभवियणामाणं बंधादो आवलियमदिक्कंतस्स उक्क० वड्ढी । तस्सेव से काले उक्क० हाणी । णवरि जसकित्तीए परभविबंधवोच्छेदचरिमसमए गतिके समान है । अप्रशस्त अध्रुवबन्धी नामप्रकृतियों की प्ररूपणा अप्रशस्त ध्रुवबन्धी नामप्रकृतियोंके समान है । विशेषता इतनी है कि उनका अवस्थान नहीं है । परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, सुभग, आदेय और सुस्वर; इनकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक दो छ्यासठ सागरोपम काल तक सम्यक्त्वका पालन कर व चार वार कषायोंको उपशमा कर पश्चात् क्षपणा में प्रवृत होता है तब उसके परभविक नामकर्मों की बन्धव्युच्छित्तिसे आवली मात्र काल जाकर उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसके ही अनन्तर कालमें उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। अवस्थानकी प्ररूपणा मनुष्यगति नामकर्मके समान करना चाहिये | आतप और उद्योत नामकर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धिको सर्वसंक्रम में देना चाहिये। इनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक प्रथमतः कषायोंकी अशमा कर अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक होता हुआ मरणको प्राप्त हो ( देव होता है उस प्रथम समयवर्ती देवके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान है ही नहीं । अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर, अशुभ और अयशकीर्ति इनकी उत्कृष्ट वृद्धि और हानिकी प्ररूपणा जैसे अप्रशस्त संस्थानोंकी की गई है वैसे करना चाहिये । स्थिर, यशकीति और शुभ इन तीन नामप्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक चार वार कषायोंको उपशमा कर तत्पश्चात् क्षपणा करता है उस क्षपणा कर नेवाले के परभविक नामकर्मोंके बन्धसे आवली मात्र काल जाकर उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उसी के अनन्तर कालमें उसको उत्कृष्ट हानि होती हैं। विशेष इतना हैं कि यशकीर्तिकी उत्कृष्ट वृद्धि परभविक नाम कृतियोंके बन्धव्युच्छेद के अन्तिम समयमें होती है । चतुर्थ उपशामनामें Jain Education International तातो' खवेंतस्स ( खवेंतओ तस्स ) ' इति पाठ: । मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु ' बंधवोच्छेदाभावादो' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy