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________________ सं माणुयोगद्दारे पदेस संकमो ( ४७१ वट्ठीयो सम्मत्तमणुपालेयूण कसाए चदुक्खुत्तो उवसामेण तदो खवेंतस्स बंधवोच्छादादो आवलियं गदस्स उक्क० वड्ढी । तस्सेव से काले उकस्सिया हाणी । अवठाणं जहा- मणुसगइणामाए तहा कायध्वं । पंचसंठाण-पंच संघडणाणं उक्क ० वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो कसाए अणुवसामेण सव्वलहुं खवेंतओ तस्स चरिमसमयसुहुमसांपराइयस्स उक्क ० वड्ढी । उक्क हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो उक्समसेडिमारुहिय चरिमसमय सुहुमसांपराइयो होट्टण मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्कस्सिया हाणी । अवद्वाणं णेव अत्थि । जहा तेजा - कम्मइयसरीराणं उक्कस्सवढी -हाणीयो कदाओ तहा सव्वासि सत्थाणं धुवबंधीणं कायन्वं । अप्पसत्थाणं धुवबंधीणं णामपयडीणं उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो कसा अणुवसामेण सव्वलहुं खवेदि तस्स चरिमसमय सुहुमसांपराइयस्स उक्क० वड्ढी । उक्क ० हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो पढमवारं चैव कसाए उवसामेदि सो चरिमसमय सुहुमसांपराइयो होदूण मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० हाणी । अवट्ठाणं जहा मणुसगइणामाए तहा कायव्वं । चदुण्णमाणुपुव्वीणामाणं वड्ढि - हाणि-अवट्ठाणाणं सग-सगगइभंगो । अप्पसत्याण दो छ्यासठ सागरोपम काल तक सम्यक्त्वका पालन कर व चार वार कषायोंको उपशमा कर क्षपणामें तत्पर है उसके बन्धव्युच्छित्तिसे आवली मात्र कालके वीतनेपर उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उसीके अनन्तर कालमें उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थानकी प्ररूपणा मनुष्यगति नामकर्मके समान करना चाहिये । शेष पांच संस्थानों और पांच संहननोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक कषायों को न उपशमा कर सर्वलघु कालमें क्षपणा करता हुआ अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिक होता है उसके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक उपशमश्रेणिपर आरूढ होता हुआ अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिक होकर मरणको प्राप्त हो देव हो जाता है उस प्रथम समयवर्ती देवके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थान नहीं है । जिस प्रकारसे तेजस और कार्मण शरीरोंकी उत्कृष्ट वृद्धि और हानिको किया है उसी प्रकारसे सब प्रशस्त ध्रुवबन्धी नामप्रकृतियों की भी वृद्धि और हानिको करना चाहिये । अप्रशस्त ध्रुवबन्धी नामप्रकृतियों की उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक कषायोंको न उपशमा कर सर्वलघु काल में उनका क्षय करता है उस अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिकके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उनकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणित कर्माशिक प्रथम वार ही कषायों को उपशमाता हैं वह अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसांपरायिक होकर मरणको प्राप्त हो जब देव होता है तब उस प्रथम समयवर्ती देवके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । अवस्थानका कथन मनुष्यगति नामकर्मके समान करना चाहिये । चार आनुपूर्वी नामप्रकृतियोंकी वृद्धि, हानि और अवस्थान की प्ररूपणा अपनी अपनी तातो खवेंनस्स ( खवेंतओ तस्स ) ' इति पाठः । ताप्रती ' तहा' इत्येतत्पदं नास्ति । → अ-काप्रत्यो: 'सांगराइयो जादो तस्स', तानौ 'सांगराइयो जादों (मदो ) तस्स ' इति पाठ: । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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