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________________ संकमाणुयोगद्दारे पदेस संकमो ( ४६९ मणुसगइणामाए सत्तमपुढविणेरइयसम्माइट्ठीहि तेत्तीस सागरोवमाणि जिरंतरं बद्धाए किमिदि णावद्वाणं ? जेसिमाइरियाणं णिग्गमाणुसारी आगमो तेसिमहिerrer अत्थि अवट्ठिदसंकमो । जेसि पुण आइरियाणं णिग्गमाणुसारी आगमो ण होदि, किंतु संकामिज्जमाणपय डिपदेसाणुसारी, तेसिमहिप्पाएण सव्वणामपयडीणं णत्थि अवद्वाणं । देवगणामाए (उक्कस्सिया ) वड्ढी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो असंखेज्जवस्साउए पूरेण दसवस्ससहस्सिएसु देवेसु उववण्णो, तदो चुदो तिरिक्खेसु मणुस्सेसु उववण्णो, तस्स तेसि पढमसमए वट्टमाणस्स उक्क० वड्ढी । उक्क ० हाणी कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियो असंखेज्जवस्साउएसु पूरेण मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स देवग दिणामाए उक्क० हाणी । जेण उवदेसेण अवद्वाणं तेण उवदेसेण तिपलिदोव मिस्स तपाओग्गउक्कस्सियाए वड्ढीए वड्ढिदूण अवट्ठिदस्स उक्कस्समट्ठाणं । मणुसगइणामाए वि णिरयगदीए तेत्तीसं सागरोवमाणि सम्मत्तमणुपालेयूण तत्थ तप्पा ओग्गउक्कस्सियाए वड्ढीए वड्ढि अवट्ठिदस्स उक्कस्समवट्ठाणं । एवं तिरिक्खगदीए सत्तमपुढविणेरइएसु तिरिक्खर्गादि चेव णिरंतरं बंधमाणेसु अट्ठाणं वत्तव्वं । शंका- सातवीं पृथिवीके नारकी सम्यग्दृष्टियोंके द्वारा तेतीस सागरोपम काल तक निरन्तर मनुष्यगतिके बांध जानेपर उसका अवस्थान क्यों नही होता ? समाधान जिन आचार्यों के मत में निर्गमके समान आगम होता है उनके अभिप्रायके अनुसार उसका अवस्थितसंक्रम होता है । परन्तु जिन आचार्योंके मत में निर्गमके अनुसार आगम नहीं होता, किन्तु संक्रान्त की जानेवाली प्रकृतियोंके प्रदेशके अनुसार आगम होता हैं; उनके अभिप्रायके अनुसार सब नामप्रकृतियोंका अवस्थानसंक्रम नहीं होता । देवगति नामकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो गुणितकर्माशिक असंख्यात - वर्षाकों में उसको परिपूर्ण करके दस हजार वर्षकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ है और फिर वहांसे च्युत होकर तिर्यंचों व मनुष्यों में उत्पन्न हुआ है उसके उक्त भवोंके प्रथम समय में वर्तमान होनेपर उसकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उसकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो गुणकर्माख्यातवर्षायुष्कों में उसे पूर्णकर ( बांधकर ) मरणको प्राप्त हो देव उत्पन्न हुआ है उस प्रथम समयदर्ती देवके देवगति नामकर्मकी उत्कृष्ट हानि होती है । जिस उपदेशके अनुसार अवस्थान होता है उस उपदेशके अनुसार तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट वृद्धिके द्वारा वृद्धिंगत होकर अवस्थानको प्राप्त हुए तीन पल्योपम आयुवाले जीवके उसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । नरकगति तेतीस सागरोपम काल तक सम्यक्त्वको पालकर और वहां तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट वृद्धि द्वारा वृद्धिंगत होकर अवस्थानको प्राप्त हुए जीवके मनुष्यगति नामकर्मका भी उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसी प्रकार तिर्यंचगतिको ही निरन्तर बांधनेवाले सातवीं पृथिवीके नारकियों में तिर्यंचगति नामकर्मके उत्कृष्ट अवस्थानका कथन करना चाहिये । तापती ' तदो ( उ ) चुदो' इति पाठः । Jain Education Interconal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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